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________________ * उपयुक्त दूापत वात परण प्रात द्विवद जी 7 मन म अगन्त घृणा थी 7 तम प्रकार र विडम्बना गृण बाजाम जीग्न ग्रार उनकी थुक्क फजीत स दूर रन्पर । एकान्त भाव स माहिन्यसंवा करना चाहते थे । हिन्दी साहित्य-सम्मेलन का तेरहवा अधिवेशन कानपुर में होने वाला था। द्विवेदी जी सार्वजनिक भीड़भक्कड़ और सभा-ममाजी से विरत जीव थे । उन्हें साहित्य-सम्मेलन के जनमम्मट मे रवीच लाना महज न था । स्वागतकारिणी समिति का अध्यक्ष बनाने के विचार से लक्ष्मीधर बाजपेयी आदि उन्हें मनाने गए । यद्यपि 'पार्यमित्र' के सम्पादक बाजपेयीजी ने आर्यसमाज की ओर से द्विवेदी जी के विरुद्ध बहुत कुछ लिया और छापा था तथापि उदारहृदय द्विवेदी जी ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। उन लोगों के विशेष अाग्रह पर किसी प्रकार अनुमति दे दी। ३० मार्च, १६३३ ई. को उन्होंने स्वागताध्यक्ष-पद मे अपना भाषण पढा । शैली की दृष्टि ने उनका यह भाषण उनकी समस्त रचनाओं में अपना निजी स्थान रखता है जिसके समकक्ष उनका कोई अन्य लेग्य या भाषण नहीं या मका है । उनकी भाषा और शेली का श्रादर्श इसी में है। श्रारम्भ में उपचार और कानपुर की स्थिति के सम्बन्ध मे कुछ शब्द कहने के अनन्तर उन्होन हिन्दी भाषा और साहित्य की मी प्रधान यावश्यक्ताश्रो और उनकी पूर्ति के उपायो की अोर हिन्दी-जान वा व्यान आकृष्ट किया । माहित्य-सम्मेलन के सदस्या में बहुत दिनों में द्विवेदी जी का अभिन्दन करने की चर्चा चल रही थी । श्रीनाथ मिह ने प्रस्ताव किया कि प्रयाग में एक माहित्यिक मेले का आयोजन करके उसमे द्विवदीजी का अभिनन्दन किया जाय । श्री चन्द्र शम्बर और कन्हैयालाल जी ऐडबोट ने उनका समर्थन किया। मन् १९३२ ई० की ४ मितम्बर की बैठक में गोपाल शरण सिंह, कन्हैयालाल धीरेन्द्र वर्मा, रामप्रसाद त्रिपाठी आदि ने मेले का निश्चय किया। द्विवेदी जो ने अपनी गाय मेले के विरुद्ध टी।' इसका समाचार मुनकर उन्हे कष्ट भी हुआ । इस मले को उन्होंने अपना उपहाम समझा और रोकने की श्राजा दी १७ बहुत वादविवाद और १. 'सरस्वती', भाग ४०, संख्या २, पृष्ट १५० । २. "भारत', ११८.३२ ई० । ३. साताहिक 'प्रताप', २८. ८. ३२ ई. और 'लीडर', ८, ६. ३० ई.. । ४. 'प्रताप', ६ ६. ३२ ई० । ५ दौलतपुर में रक्षित देवीदन शुक्र का पत्र, २०. १०. ३२ ई० । ६, दौलतपुर में रक्षित श्रीनाथ सिंह का पत्र, २८. १०. ३२ ई० । • दौलतपुर में रचित क यालाल का पत्र ३०१० ३२ इ.
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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