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________________ । ५६ । मले आदि स दूर रहना चाहत थ उन्ह रायबहादुर' सरीखा उपाधिया की तनिक भी कामन न थी उहे सच्चा मुस और सन्ताप दूसरा र सुप और शान्ति म मिलता था उन्होन स्वय लिखा था-"जब बदल चमार की जड़ी उतर जाती है तब मै समझता हूँ कि मुझे कैसरे हिन्द का तमगा मिल गया ।"" उन पर कुछ लिखने के लिए लोग द्विवेदी जी से उनकी अप-डेट कृतियों के उल्लेखमहित उनकी संक्षिप्त जीवनी माँगते, परन्तु द्विवेदी जी उनके इन पत्रो का उत्तर तक न देने थे । ___मूर्यनारायण ने जब उनकी जीवनी लिखकर संशोधन के लिए उनके पास भेजी तब द्विवेदी जी ने उसमे काटछाट की, कुछ घटाया बढाया भी। कई बातें अपनी प्रशंसा में भी जोडी, यथा “विद्याविषयक वादविवाद में भी द्विवेदी जी की बराबरी शायद ही कोई और हिन्दी लेखक कर सके। हिन्दी पत्रो के पाठक इस बात को भी भली भॉति जानते हैं।" या "द्विवेदी जी हिन्दी संस्कृत दोनो भापात्रो के उत्तम कवि है ।''3 इन बातो को लेकर उन्हें अात्मश्लाघी कहना उचित नहीं । संशोधनरूप मे कलित इन पंक्तियों का कारण प्रात्मप्रशंसा न होकर सच्चे शिक्षक की सुधारक-मनोवृत्ति ही है। द्विवेदी जी शिष्टाचार के पूरे पालक थे । जब कोई उनके पास जाता तो अपनी डिबिया मे दो पान उसे देते और बात चीत समाप्त होने पर फिर दो पान देते जो इस बात का संकेत होता कि अब श्राप जाइये ।४ अपने प्रत्येक अतिथि की शुश्रया वे आत्मविस्मृत होकर करते थे। जुही में जब केशवप्रमाद मिश्र मोकर उठे तो देखा कि द्विवेदी जी स्वयं लोटे का पानी लिए हुए ग्वड़े है । मिश्र जी लजित हो गए। द्विवेदी जी ने उत्तर दिया - वाह ! तुम तो मेरे अतिथि हो।" उनके शिष्टाचार में किसी प्रकार की माथिकता या आडम्बर नहीं था । वे वास्तविक अर्थ में शिष्ट श्राचार के समर्थक थे। किसी की थोडी भी अशिष्टता उन्हें खल जाती थी। एक बार वे कामताप्रसाद गुरु से बातें कर रहे थे। गुरु जी बीच ही में बोल उठे। द्विवेदी जी ने चेतावनी दी---आप से बातचीत करना कठिन है। गुरु जी नतमस्तक हो गए। , 'द्विवेदी-मीमांसा', पृ० २७५ पर उद्ध त । २. दौलतपुर में रक्षित वैद्यनाथ मिश्र विह्वल का पत्र, २५. ४. २६ । ३. द्विवेदी जी के पत्र, बंडल ३ च, काशी नागरी प्रचारिणी सभा का कार्यालय । ४. 'द्विवेदी-मीमांसा', पृ० २३ । ५. 'सरस्वती'. भाग १०, सं० २, पृ० १८६ । , १३३
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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