SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वहाँ किसी प्रकार एफ वप कटा दौलतपुर स रायपरली बहुत दूर था अत व उन्नाव जिल के रनजीतपुरखा स्कूल में लाए गए । विधि का विधान, कुछ दिन बाद वह स्कूल ही टूट गया । तदनन्तर वे फतहपुर भेजे गए ! वहाँ डबल प्रोमोशन न मिलने के कारण उन्नाव चले श्राए । यहाँ पर डबल प्रोमोशन मिल गया। फिर भी उनका जी न लगा । पाँच-छः महीने बाद वे पिता के पास बम्बई चले गए। इमन्क पूर्व ही उनका विवाह हो चुका था। बम्बई में उन्हाने संस्कृत, गुजराती, मराठी, और अँगरेजी का थोडा बहुत अभ्यास किया । वहाँ पर पडोस में ही रेलवे के अनेक सार्टर और बलर्क रहते थे। उनके फंदे में पड़ार द्विवेदी जी ने रेलवे में नौकरी कर ली । वहाँ से वे नागपुर गए । वहाँ भी उनका जी न लगा उनके गाउँ के कुछ लोग अजमेर में राजपूताना रेलवे के लोको सुपरिटेंडेंट के आफिस में क्लर्क थे। उन्हीं के श्रासर वे अजमेर चले गए। पन्द्रह रुपए मासिक की नौकरी मिल गई। उसमे से पाँच रुपया वे अपनी माता जी के लिए घर भेजते थे, पाँच मे अपना बर्च चलाते थं और अवशिष्ट पाँच रुपया मे एक गृह-शिक्षक रखकर विद्याध्ययन करते थे । हमारे विद्याव्यसनी तपः पृत साहित्यव्रती की साधना 'कितनी कठिन थी ! अजमेर में भी जी न लगने के कारण व पुनः बम्बई लौट अाए । प्रतिभाशील व्यक्तिया की जिज्ञासा भी बड़ी प्रबल हुआ करती है। मुम्बादेवी के तार-घर मे तार खटग्वदाते देख कर उन्हें तार सीखने की इच्छा हुई। तार सीख कर जी० अाइ० पी० रेलवे में सिग्नलर हो गए । उस समय उनकी श्रायु लगभग बीस वर्ष की थी। तार बाबू के पद पर रह कर द्विवेदी जी ने टिकटबाबू , मालबाबू , स्टेशन मास्टर, प्लेटियर- श्रादि के काम सीखे । फलस्वरूप उनकी क्रमश: पदोन्नति होती गई। इंडियन मिडलैंड रेलवे के खुलने पर उसके टफिक मैनेजर डब्ल्यू० बी० राइट ने उन्हे झाँसी बुला लिया और टेलीग्राफ इन्सपेक्टर नियुक्त किया। कालान्तर में वे हेड टेलीग्राफ इन्सपेक्टर हो गए । दौरे से ऊब कर उन्होंने टफिक मैनेजर के दफ्तर में बदली करा ली। कुछ काल बाद असिस्लेंट चीफ क्लर्क और फिर रेट्स के प्रधान निरीक्षक नियुक्त हुए। __ जब बाइ० एम० रलव जी० श्राइ० पी० रलवे में मिला दी गई तब व कुछ दिन फिर बम्बई में रहे। बड़ों का वातावरण उन्हें पसन्द न आया । ऊँचे पद का लोभ त्याग कर उहोंने फिर माँमी का गया वहाँ डिस्किट'फिक , " के प्रापिम म
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy