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________________ का भरसक बहिष्कार किया। शब्दों के अगभग और तोड़ मरोड़ का दूर किया। मुहावर क प्रयोग द्वारा भाषा में मरमता और प्रभावोत्पादकता लाए, परन्तु अँगरेजी वा उर्दू में प्रभावित नहीं हुए । भाषानिर्माण के पथ पर भारतेन्दु अकेले नहीं थे । धर्मप्रचारक दयानन्द सरस्वती ने हिन्दी को भावाभिव्यंजन और कटाक्ष की शक्ति दी । प्रतापनारायण मिश्र ने स्वच्छन्द गति, बोलचाल की चपलता, वक्ता और मनोरंजकता दी । प्रेमघन ने गद्य काव्य की झलक, आलंकारिकता की ग्रामा, सम्भाषण का अनूठापन और अर्थव्यञ्जकता दी । बालकृष्ण भट्ट ने अपनी चलती, चरपरी, तीखी और चमत्कारपूर्ण भाषा में, श्रीनिवासदास ने बडी बोली के शब्दों और मुहावरों से, जगमोहनसिह ने दृश्याकन और मावव्यंजना में समर्थ, स्निग्ध, संयत, सरल और सोह े श्य शैली में तथा तत्कालीन अन्यलेग्वको स्वभावतः श्रानन्दी जीवों, ने अपनी सजीव और मनोरंजक शैलियों द्वारा विपन्न हिन्दी को सम्पन्न बनाने का प्रयास किया | १६ वी शती के गद्य का उपर्युक्त मूल्याकन उस युग और इतिहास की दृष्टि से है । वस्तुतः इन बातों के होते हुए भी भारतेन्दु-युग ने खडी बोली में पर्याप्त और उच्चकोटि की रचना नहीं की। उस युग की शुद्ध और संकर ग्वडी बोली प्राजल, परिष्कृत और परिमार्जित न हो सकी । पद्य में तो व्रजभाषा का एकच्छत्र राज्य था ही, गद्य को भी उसने और ने आक्रान्त कर रखा था । दयानन्द भारतेन्दु श्रादि लेखकों की कृतियों में भी प्रान्तीयता की प्रधानता थी । प्रताप नारायण मिश्र इसमे बुरी तरह प्रभावित थे । उन्होंने 'घूरे के लना बोनैं, कनातन के डौल बाधै', 'खरी बात शहिदुल्ला कहैं. मबके जी ते उतरे रहे', मुँह विचकाना' पत्र निकालना' श्रादि वैसवाड़ी कहावत तथा मुहावरों और 'टैव', ग्वाखियाना'. 'तत' आदि प्रान्तीय शब्दों का प्रयोग किया है। जैनेन्द्रकिशोरकृत 'कमलिनी' उपन्यास में रहा है' का प्रयोग हास्यास्पद नहीं तो 'नाक बह रही है' के स्थान पर 'नासिका रन्ध्र स्फीत हो और क्या है ? भीममेन शर्मा एक पग और आगे बढ़ गए है। उन्होंने उर्दू के दुश्मन', 'सिफारिस', 'चस्मा', 'शिकायत' श्रादि के स्थान पर क्रमशः 'दुःशमन', 'क्षिप्राशिप', 'चदमा', 'शिक्षायन्न' श्रादि प्रयोग करके संस्कृत का जननीत्व सिद्ध करने की चेष्टा की है। बालकृष्ण भट्ट आदि ने विदेशी शब्दों को मनमानी अपनाया है । 'अपव्यय या फिजूलखर्ची', 'मोहबत संगत' यदि मे मस्कृत और अरवी फारसी के शब्दों का प्रयोग भाषा की निर्बलता का सूचक है । प्रेमघन की भाषा कही ('भारत-सौभाग्य' नाटक आदि में ) उर्दू मिश्रित और कही ( 'आनन्द - कादम्बिनी' में ) संस्कृत - गर्भित, शब्दाडम्बरपूर्ण दीर्घवाक्यमयी और व्यर्थ के पात्रों की अपनी अपना भपा बड़ी ही निराली "
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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