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________________ (शुरु का नर [ . मी नि दी लखन और लल्लूलाल क प्रभसागर की जनमिश्रित थी सदल मिश्र की भाषा र पुतिन और भुगना पन था। ईसाइ बम प्रचारका की रचनाएँ साहित्यिक मौन्दर न हान थी। उनका टूटाफूटा गद्य ग्राम्यप्रयोगा, गलत मुहावरी, व्याकरण की अशुद्धियो; निरर्थक शब्दो, शिथिल और असम्बद्ध वाक्यविन्याम से भरा हुअा था। राजा शिवप्रमाद ने इम अभावपूर्ति के लिए स्वयं और मित्रों द्वारा पाठ्य पुस्तक लिखी लिम्वाई । 'मानव धर्म मार' भूगोल हस्तामलक, आदि कुछ रचनाओं को छोडकर उन्होंने देवनागरी लिपि में उर्दू का ही प्रयोग किया । हिन्दी का 'गवॉरपन दूर करने तथा उसको 'फैशनेबुल' बनाने के लिए अरची फारसी के शब्द भरे । अपने अफसरों के प्रसन्न करने से लिये हिन्दी का गला घोटा । नापा के इस विदेशी रूप को ग्रहण करने के लिए समाज तैयार न था । मु० देवीप्रमाद और देवकीनन्दन स्वत्री ने सच्ची हिन्दुस्तानी लिखी। भाषा का यह रू मी साहित्यिको को न म्चा । प्रतिक्रिया के रूप मे गजा लक्ष्मणसिह विशुद्ध हिन्दी को लेकर आगे बढ़े। उनकी मम्झतगर्भिन भाषा भी कृत्रिम और त्रुटिपूर्ण थी । भाषा की इस भूमिका में भारतन्दु ने पदार्पण किया। जनता सरल, मुन्दर और सहज भाना चाहती थी। गद्य में व्यापक प्रयोग न होने के कारण ब्रजभाषा में गद्योपयुक्त शक्ति, मामग्री और साहित्य का अभाव था । रबडी बोला व्यवहार और ग्रन्थों में प्रयुक्त हो चुकी थी। परन्तु उसका म्वन्प अनिश्चित था। भारतेन्दु ने चलते शब्दों या छोटे छोट वाक्या के प्रयाग द्वारा बोल चाल और संवाद के अनुरूप मरल एवं प्रवाहपूर्ण गद्य का बहुत ही शिष्ट और साधु रूप प्रस्तुत किया । भाषा के लिए उन्हें बडा ही घोर संग्राम करना पडा { १८८० र्ट में म्हंटर कमीशन' के सामने हिन्दीभाषी जनता द्वारा अनेक मेमोरियल अर्पित किए गए । सरकारी अफसरों के मौरखने की भाषा उर्दू थी। अत, उनके अधीनस्थ भी उर्दू भक्त 4 | गद्य की भाषा पर भी अवधी और ब्रजभाषा का प्रभाव था। परंपरागत भाषा का भंडार बहत ही क्षीण था। वह विकृत, अप्रचलित और प्राचीन शब्दों में पूर्ण तथा कला और विचारप्रदर्शन के योग्य शब्दो में नर्वथा हीन था। भारतेन्दु ने वाड्मय के विविध अगो का पूर्ति के लिए चलते, अर्थबोधक अोर माथ ही सरल गद्य के परिष्कृत रूप की प्रतिष्ठा की। यहा नहीं, उन्होंने जनभाषा और जनसाहित्य की श्रावश्यकता को ममझा, उपभाषाओ और ग्रामीण वोलियो मे भी लोकहितकारी माहित्यरचमा का निर्दश किया । आवश्यकतानुसार 'उन्हाने दा प्रकार की गद्यशैलिया में ग्चना की। एक मग्न और बोलचाल की पदावली यटाक्दा अरबी-फारी के शब्दों में जित है और वाक्य प्रायः छोटे हैं। 'चिन्तनीय विषयों के विषयानुकूल अाज या माधु से पृण प्राय मगस्त और है उन्होंने अयबहन शब्दों
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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