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________________ योग क्षिप महानाटन कला की इति श्री समझती अशुद्ध चार भाग का दशा और भी शोचनीय थी भारतन्दु की भाषा की त्रुटियों ता किसी प्रकार सह्य छ, परंतु केशवराम भट्ट की घोर उर्दू' या 'प्रेमघन' -रचित 'भारत-सौभाग्य' में उर्दू, मारवाड़ी, भोजपुरी, पंजाबी, मराठी, बंगला यादि की विचित्र और स्वाभाविक खिचड़ी अत्यन्त हास्यास्पद है । श्राज के सिनेमाघरो की भोति तत्कालीन पारसी थिएटरों ने जनता को बरबस अपनी ओर खींच लिया था। अयोध्या सिह उपाध्याय ने प मन - विजय व्यायोग' और 'रुक्मिणी-परिणय' तथा रामकृष्ण वर्मा ने अपने अनुवादो द्वारा नाट्य कला का पुनरुत्थान करने का प्रयास किया, परन्तु सफलता न मिली | हिन्दी पाठकों और अभिनय - दर्शकों की रुचि इतनी भ्रष्ट हो चुकी थी कि उसका परिष्कार न हो सका ! हिन्दी - कथा - साहित्य का प्रारम्भिक क्रम १६ वी शती के प्रथम दशाब्द में इंशाअल्ला वाँकी 'रानी केतकी की कहानी' 'लल्लू लाल की 'सिहासन बत्तीसी', 'वैताल पचीसी', 'माधवानल-काम-कन्द-कला', 'शकुन्तला' और 'प्रेमसागर' तथा सदल मिश्र के नासिकेतोपख्यान' से ही चल चुका था । फोर्ट विलियम कॉलेज मे गिल- क्राइस्ट की अध्यक्षता में प्रारब्ध अनुवाद कार्य संस्कृत और फारसी के ग्राख्यानी तक ही सीमित रहा। पौराणिक धार्मिक कथाएँ ‘शुक्ल्बहत्तरी', 'सारंगासदावृक्ष', 'किस्सा-तोता-मैना', 'किस्सा साढ़े तीन यार तथा फ़ारसी-उद से गृहोत' चहार-दर्वेश' वामोवहार' 'किस्सा हातिमताई' आदि रचनाएँ कहानी-प्रेमियों के हृदय पर अधिक काल तक शासन न कर सकीं । इन रचनाओं में न साहित्यिक सौंदर्य था न जीवन की व्यापकता । कथा-साहित्य के प्रसार और प्रचार मे पत्रिकाओं ने भी योग दिया । 'हरिश्चन्द्र- चन्द्रिका' में 'मालती', 'हिन्दी- प्रदीप' में 'पढे-लिखे 'कार की नकल', 'भारसुधा - निधि' में 'तपस्वी', 'भारतेन्दु' में 'अकलमंद' आदि कथाएं प्रकाशित हुई । भारतेन्दु-युग आधुनिक लघु कहानिय की कल्पना न कर सका और न तो उसम उपन्यास- कला का विकास करने की ही शक्ति थी । कलिराज की सभा' 'एक अद्भुत पूर्व स्वप्न', 'राजा भोज का सपना', 'स्वर्ग में विचार-सभा का अधिवेशन', 'यमलोक की यात्रा' आदि रचनाओं मे कहानी और उपन्यास के मूल तत्व अवश्य विद्यमान थे। निवन्धा और नाटक की लोकप्रियता ने हिन्दी साहित्यकारो को उसी ओर आकृष्ट किया । कथासाहित्य के अनुकूल वातावरण ने उसकी रचना ग्रागामी युग के लिये स्थगित कर दी । अन्य श्री सुन्दर कथावस्तु मनोहर संभाषण, भावनाओं की
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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