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________________ ब्रजभाषा की पुरानी धारा म ही बनते रहे आरम्भ म श्रीधर पाठक नाथूराम शमा शकर' अयोध्यासह उपाध्याय श्राद ने भी ब्रजभाषा को ही काय नापा के रूप म ग्रहण किया । सन् १८७६ ई० से खड़ी बोली का प्रभाव बढ़ने लगा । स्वयं भारतेन्दु ने खड़ी बोली में पद्य लिखे : खोल खोल छाता चले, लोग सड़क के बीच । कीचड़ में जूते फँसे, जैसे अघ मे नीच ॥' सन् १८७६ ई० मे ही बाबू लक्ष्मीप्रसाद ने गोल्डस्मिथ के 'हरमिट' (Hermit) का खड़ी बोली मे अनुवाद किया था । खड़ी बोली में काव्य-रचना के प्रति प्रोत्साहन न मिलने के कारण भारतेन्दु और उनके सहयोगियों ने ब्रजभाषा को कविता का माध्यम बनाए रक्खा । उम युग में कोई भी कवि खडो बोली का ही कवि नहीं हुआ। श्रीधर पाठक ने १८८६ ई. में बड़ी बोली की पहली कविता-पुस्तक एकान्तवासी योगी' लिखी । इस समय गद्य और पद्म की भाषा की भिन्नता लोगों को खटक रही थी । श्रीधर पाठक, अयोध्याप्रसाद खत्री आदि खड़ी बोली के पक्षपाती थे और प्रतापनारायण मिश्र, राधाचरण गोस्वामी आदि ब्रजभाषा के | राधाकृष्णदास का मत था कि विषयानुसार कवि किसी भी भाषा का प्रयोग करे । ब्रजभाषा की पुरातनता, विशाल साहित्य, माधुरी और सरसता के कारण खड़ी बोली को आगे श्राने में बड़ी कठिनाई हुई। परन्तु काल का श्राग्रह बोलचाल की भाषा खड़ी बोली के ही प्रति था । १८८८ ई० में अयोध्या प्रसाद खत्री ने 'ग्वड़ी बोली का पद्म' नामक सग्रह दो भागां मे प्रकाशित किया । बदरीनारायण चौधरी, श्रोधर पाठक देवीप्रसाद 'पूर्ण' नाथूराम शर्मा, श्रादि ने ब्रजभाषा के बदले खड़ी बोली को अपनाकर भारतेन्दु के प्रयागो को नापा के निश्चित रूप बी ओर आगे बढ़ाया । उन्नीसवीं शताब्दी समाप्त हो गई पर, लोगो के उद्योग करने पर भी इस नवीन काव्य-भाषा मे अपेक्षित माधुरी, प्राजलता और प्रौढ़ता नश्रा मकी । सामयिक साहित्य की उन्नति अङ्गरेजी श्रादि भाषाओं के वाङ मय का अध्ययन और । पहली सितम्बर सन् १८८१ के 'भारत-मित्र' में अपने छन्दों के साथ भारतेन्दु ने यह पत्र भी छपाया था "प्रचलित साधुभाषा में यह कविता भेजी है । देखियेगा कि इसमें क्या कसर है और किस उपाय के अवलम्बन करने से इसमें कात्यसौंदर्य बन सकता है । इस सम्बन्ध में सर्वसाधारण की सम्मति ज्ञात होने से आगे से वैसा परिश्रम किया जायगा। लोग विशेष इच्छा करेंगे तो और भी लिखने का यन्न करूँगा।" मारनेन्दु-युग बा० रामविलास शर्मा, पृ० १६८ ६६
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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