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________________ चलिवे की चलाइथना आ द १ पर तु ममस्या पूर्ति क दुव्यसन ने रचनाकारों की प्रतिमा को बहुत कुछ कुण्ठत कर दिया रासक वाटिका" रासक रहग्य श्राद पत्रिकायों में तो एकमात्र समन्या-पूर्ति ही के लिए स्थान था और उनके लेखक पद्यकतांत्रों की रचनाओं में तुकबन्दी से अधिक कुछ भी नहीं है। इस प्रकार की पूर्तियों में श्रार पत्रिकाओं ने हिन्दी काव्य का बडा अहित किया है ।। ___ उस युग में प्रबन्ध काव्यों का अभाव सा रहा । 'जीर्ण जनपद', 'कम वध' ( अपूर्ण ) 'कलिकाल-दर्पण', 'होलो की नकल', 'एकान्तवासी योगी', 'ऊजड ग्राम' आदि इनी गिनी रचनाएं प्रबन्ध-कविता की दृष्टि से निम्न श्रेणी की है। इनका मूल्य खड़ी-बोली-प्रबन्धकाव्य के इतिहास की पीठिका रूप में ही है । एक ओर तो रीतिकालीन पुरानी परिपाटी के प्रति कवियों का मोह था और दूसरी ओर अान्दोलन और सक्रान्ति की अवग्था । अतएव कवियों की प्रचारात्मकता और उपदेशात्ममता के कारण आधुनिक शैली के गीत-मुक्त का की रचना न हो सकी | काव्य-विधान के क्षेत्र में गीति-मुक्तकों और प्रबन्ध काव्यों के अभाव की न्यूनाधिक पूर्ति पद्य-निबन्धों ने को । 'बुढ़ापा', 'जगत-सचाई-सार' 'सपूत', 'गोरक्षा' श्रादि पद्यात्मक निबन्धी मे गीतिमुक्तकों की मार्मिक अनुभूति का अाभास है । कथासूत्र तथा विषय की एकतानता के कारण प्रबन्ध-व्यजकता भी है । १६ वीं शती के अन्तिम दशाब्द तक इन निवन्धों मे भावात्मकता के स्थान पर नीरसता आ गई। ये इतिवृत्तात्मकरूप मे पद्याबद्ध निबन्धमात्र रह गए। इस युग के कवियों ने सबैया, कविन, दोहा, चौपाई, सोरठा श्रादि की पूर्वकालिक पद्धति से आगे बढ़कर रोला, छप्पय, अष्टपदी, लावनी, गजल, रेग्खता, द्रुतविलम्बित, शिस्त्ररिणी आदि पर ध्यान तो अवश्य दिया, परन्तु इस दिशा में उनको प्रगति विशेष महत्वपूर्ण न हुई । छन्दों की वा तविक नवीनता और स्वछदता भारतेन्दु के उपरान्त पं० श्रीधर पाठक की रचनाओं मे चरितार्थ हुई । लावनी की लय पर लिखे गये, 'एकान्तवासी योगी', सुथड़े साइयों के ढग पर रचित 'जगत-सचाई-सार' आदि मे राग-रागनियों की अवहेलना करके कविता की लय और स्वरपात पर ही उन्होंने विशेष ध्यान दिया है : "जगत है सञ्चा, तनिक न कच्चा, समझो बच्चा इसका भेद । २ भारतेन्दु, प्रतापनारायण मिश्र, प्रेमघन, जगमोहननिंह, अम्बिकादत्त व्याम आदि कवि १ हिंदी साहित्य का इतिहास - रामचन्द्र शुक्ल, पृ. ७०१---२ २ जगतसचाई-सार
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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