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________________ [ ३३३ (ग) कविता मनुष्यता की संरक्षिणी है। कविता सृष्टि के किमी पदार्थ वा व्यापार के उन अंशां को छाट कर प्रत्यक्ष करती है जिनकी उत्तमता वा बुराई मनुष्यमात्र की कल्पना में इतनी प्रत्यक्ष हो जाती है कि afa को अपनो विवेचन क्रिया से छुट्टी मिल जाती है और हमारे मनोवेगों के प्रवाह के लिए स्थान मिल जाता है । तात्पर्य यह कि कविता मनोवेगों को उभाड़ने की एक युक्ति है ।' 1 कविता से मात्र की रक्षा होती है। सृष्टि के पदार्थ या व्यापार विशेष को कविता इस तरह व्यक्त करती है मानों वे पदार्थ या व्यापार विशेष नेत्रों के सामने नाचने लगते हैं । वे मूर्तिमान् दिखाई देने लगते है । उनकी उत्तमता या अनुत्तमता का विवेचन करने में बुद्धि से काम लेने की जरूरत ही नहीं | कविता की प्रेरणा मे मनोवेगों के प्रवाह जोर से बहने लगते हैं तात्पर्य यह कि कविता मनोवेगों को उत्तेजित करने का एक उत्तम साधन है । द्विवेदी युग की गद्य भाषा में मुख्यतः चार रीतियां दिखाई देती है :- संस्कृत-पदावली, उर्दू ए-मुल्ला, ठेठ हिन्दी और हिन्दुस्तानी । गोविन्द नारायण मिश्र, श्यामसुन्दरदास चंडीप्रसाद हृदयेश श्रादि ने संस्कृत-गर्भित हिन्दी का प्रयोग किया है और अन्य भाषाओं के शब्दों को दूध की मक्खी की भाति निकाल फेंका है। वस्तुत हिन्दी का कोई लेखक उर्दू एमुल्ला का एकान्त लेखक नहीं हुआ। यदि वह ऐसा करता तो हिन्दी का लेखक ही न रह जाता । बालमुकुन्द गुप्त, पद्मसिंह शर्मा, प्रेमचन्द आदि ने यत्र तत्र अरबी-फारसी- प्रधान भाषा का प्रयोग किया है, यथा 'मेवासदन' में म्यूनिसिपल बोर्ड की बैठक के अवसर पर । ठेठ हिन्दी का वास्तविक दर्शन हरिऔध जी के 'ठेठ हिन्दी का ठाठ' में मिलता है। प्रेम चन्द, जी. पी. श्रीवास्तव आदि ने भी अपने देहाती पात्रों के मुख से ठेठ हिन्दी बुलवाई है । हिन्दुस्तानी [ वर्तमान रेडियो की हिन्दुस्तानी कही जाने वाली उर्दूए मुल्ला नही ] का सुन्दर रूप देवकी नन्दन खत्री के उपन्यासों में दिखाई पडता है । प्रेमचन्द तथा कृष्णानन्द गुप्त आदि की भाषा में भी हिन्दी उर्दू के समिश्रण में हिन्दुस्तानी का प्रयोग हुआ है । संस्कृत की परुपा, उपनागरिका और कोमला वृत्तियों की दृष्टि से भी हम द्विवेदी युग के गद्य की समीक्षा कर सकते हैं । गोविन्द नारायण मिश्र श्यामसुन्दरदास आदि की भाषा में कर्णकटु शब्दों के बहुत प्रयोग के कारण परुपा, रामकृष्ण दास, वियोगी हरि आदि के गद्यकाव्य में कोमलकान्त पदावली का समावेश होने के कारण कोमला और रामचन्द्र शुक्ल, W 1 १३०३ ई० की सरस्वती की उपर्युक्त प्रतियों में रामचन्द्र शुक्र तिम्बित कवित
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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