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________________ [ २३२ मूल मशोपित हो! मजदूर के अनाथ नयन, अनाथ श्रात्मा और अनाश्रित जीवन की बोली मीग्यो । फिर देग्बोगे कि तुम्हारा यही माधारण जीवन ईश्वरीय भजन हो जायगा। (ख) वती की मध्या से क्या लाभ ? मजदूर के अनाथ नैनी, अनाथ अात्मा और अनाश्रित जीवन की बोली सीखो। दिनरात का साधारण जीवन एक ईश्वरीय रूपमजन हो जायगा । मजदूरी तो मनुष्य का व्यष्टी रूप समष्टी रूप का परिणाम है।' स्वर्णमुद्रा की अात्मकहानी गत सोमवार को मैं पं० शिव जी के सहित, कलकत्ते गया था। धूमते २ हम दोनों अद्भुतालय अजायबघर की तरफ जा निकले । (अजायबघर) की बात ही क्या ! वहा की सर्व संग्रहीत वस्तु अजीब हैं । वहा देश देशान्तर के सुन्दर, भयानक, छोटे, बडे जीवजन्तु देखने में आते हैं यहाँ पर रंग बिरंगी चिड़ियाँ हैं, वहाँ पर नानाप्रकार की मछलियां हैं | कहीं शेर कटघरे में बन्द इम बात को बताते हैं कि 'बुद्धिर्यस्य यलं तस्य', और कहीं अजगगे को देवकर जगत्पिता की करुणा याद पाती है। मजदूरी तो मनुष्य के समष्टि रूप का व्यष्टि रूप परिणाम है। एक अशरफी की श्रा-मकहानी एक दफा मै पंडित जी के साथ कलकसे गया । घूमते घामते हम दोनो अजायबघर की तरफ जा निकले । अजायबघर की बात ही क्या ? वहाँ की मभी चीजे अजीब हैं । कही देश देशान्तर के अद्भुत २ जीब जन्तु हैं, कहीं पर रंग बिरंगी चिड़िया है, कही नाना प्रकार की मछलिया हैं, कहीं शेर कटघरे में बन्द इस बात को बतलाते हैं कि बुद्धि र्यस्य बलं तस्य, और कही अजगरी को देखकर हिन्दुस्तान की अजगर-वृत्ति का स्मरण होता है। 1. 'पूर्णसिंह', मजदुरी और प्रेम, 'सरस्वती', १६११ ई०, काशी नागरी प्रचारिणी सभा के कता भक्म में रचित सरस्वती' की
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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