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________________ तार्किक ! उस युग के पाठ का को बौद्धिक इयत्ना सीमित होने के कारण उस समय चिन्तनीय विषयो की व्याख्या की नितान्त आवश्यकता थी । गौरीशंकर हीराचन्द अोझा ने वर्तमान नागरी अक्षरों की उत्पत्ति'', अोर नागरी अंको की उत्पत्ति'२ श्रादि रोचक विचारगुक और ठोस निबन्ध लिखे । रामचन्द्र शुक्ल के साहित्य', 3 'कविता क्या है',४ 'काव्य में प्राकृतिक दृश्य',५ श्रादि निवन्ध भी व्याख्यात्मक कोटि के हैं । नागरी प्रचारिणीपत्रिका के मत्रहवें, अठारहवे, उन्नीसर्वे तथा तेईसवें भागी में प्रकाशित शुक्लजी के 'क्रोध', 'भ्रम', 'निद्रारहस्य', 'घृणा', 'करुणा', 'या', 'उत्साह 'श्रद्धाभक्ति', 'लज्जा और ग्लानि' तथा 'लोभ या प्रेम आदि मनोवैज्ञानिक निवन्ध विशेष सारगर्भित और विश्लेपणात्मक है । श्यामसुन्दरदास का 'साहित्यालोचन' सम्बत् १६७६ ] और पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी का विश्वसाहित्य' [ १६८१ ई.] श्रादि व्याख्याप्रधान चिन्तनात्मक निबन्धो के ही संग्रह है जिनमें कविता, उपन्यास, नाटक आदि का विस्तृत और सूक्ष्म विवेचन किया गया है। अालोचनात्मक निबन्ध साहित्यिक रचनायी या रचनाकारो की ममीक्षा के रूप में उपस्थित किए गए। मिश्रबन्धु का वर्तमानकालिक हिन्दी साहित्य के गुण दोष',६ रामचन्द्र शुक्ल-लिखित जायसी , तुलसी और सूर की भूमिकाएं अादि निबन्ध की उसी कोटि में हैं । तार्किक निवन्धो में निबन्धकारों ने अपने सारगर्भित बिचारो को युक्तियुक्त ढंग में व्यक्त किया । चिन्तनान्मक निबन्ध के इस प्रकार की विशेषता विषय के न्यायानुकूल सप्रमाण प्रतिपादन में है । चन्द्र धर शर्मा गुलेरी, गौरीशंकर हीराचन्द ओझा, जयशंकर प्रसाद आदि के गवेषणात्मक और गुलाबराय के दार्शनिक निबन्धो का इस दिशा में महत्वपूर्ण स्थान है, उदाहरणार्थ उलूलुथ्वनि [ गुलेरी ], 'चन्द्रगुप्त मौर्य' [ प्रसाद आदि। भारतेन्दु युग के निवन्ध कहे जाने वाले लेखों में विश्य या विचार की एकतानतान थी। एक ही निवन्ध में अनिबद्ध रूप से सबकुछ कह डालने का प्रयास किया गया था। द्विवेदी जी ने हिन्दी के निवन्ध का निबन्धता दी । उस युग के महान् निबन्धकारों के ललाट पर यशस्तितक द्विवेदी जी के ही कृपालुकरों मे लगा। वेगीप्रसाद, काशीप्रसाद, रामचन्द्रशुक्ल, लक्ष्मीधर बाजपेयी, चतुर्भुज श्रौदीच्य, यशोदानन्दन अखौरी, चन्द्रधर शर्मा गुलेरी, पूर्णसिह, १. प्रथम हिन्दी-साहिय-सम्मेलन का कार्य-विवरण, पृष्ठ १६ । २. 'द्वितीय हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन का कार्यविवरण', पृष्ठ २३ । ३. 'सरस्वती', भाग ५, पृष्ठ १५४ और १८६ । ४. 'सरस्वती', भाग, १०, पृष्ट १५५ । ५. 'माधुरी'. भाग १, खांड, २ संख्या ५ और ६. पृष्ठ क्रमशः ४७३ और ६०३ । ६ 'नागरी प्रचारिणी पत्रिका माग १८ सस्था ३ ४ पृष्ट ६३
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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