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________________ विश्य को ही वक्ता बनाकर निबन्धाकर ने उसी के मन्त्र में उनम पुरूष में उसकी परिचयात्मक कहानी कही है ।, यथा उपयुक्त 'इत्यादि की श्रा-मकहानी', 'एक अशरफी की आत्मकहानी, २ 'मुद्गरानन्द-चरितावनी' 3 अादि । ये नियन्ध मनोरजन की दृष्टि से विशेष आकर्षक हे ! चरितात्मक निबन्धी मे ऐतिहासिक, साहित्यिक धार्मिक, राजनैतिक आदि महान् पुरुषो या स्त्रियों के जीवनचरित अंकित किए गए है। कुछ जीवनचरित अपने स्वामी, श्रद्धापान या प्रेमभाजन को मस्ती ख्याति देने के लिए भी लेग्यको ने अवश्य लिग्वे किन्तु अधिकाश का उद्देश आदर्शचरित्री के चित्रण द्वारा पाठको के ज्ञान और चरित्र का विकास करना ही था। इस क्षेत्र में द्विवेदी जी के अतिरिक्त वणीप्रमाद, काशीप्रमाद, गिरिजाप्रसाद द्विवेदी, रामचन्द्र शुक्ल, लक्ष्मीधर बाजपेयी आदि ने महत्वपूर्ण कार्य किया । मैकड़ो जीवनचरिन द्विवेदी-सम्पादित 'सरस्वती' में ममय ममय पर प्रकाशित हुए। भावात्मक निबन्ध सहृदय निबन्धकार के हृदयोद्गार और पाठक के हृदय को अभिभून कर देने वाले प्रभावाभिव्यंजक वस्तूपस्थापन है | द्विवेदी-युग के मावात्मक निबन्धो की तीन कोटिया है । एक तो साधारण भावात्मक निबन्ध है जिनमें चिन्तन और मर्मस्पर्शी कविन्ध दोना ही की अपेक्षाकृत न्यूनता है, उदाहरणार्थ कबिन्ध'४ श्रादि । दूमरे विचारगर्मित भावात्मक निबन्ध है जिसम काव्य की रमणीयता के साथ ही माथ चिन्तनीय मामग्री भी हे. यथा श्राचरण की मन्यता',५ 'मजदूरी और प्रेम'६ श्रादि और तीसरे गद्य-कविताओं के रूप मे लिखे गए वे काव्यमय भावात्मक निबन्ध हैं जिनकी ममीक्षा ऊपर कविता के प्रमग मे हो चुकी है। चिन्तनात्मक निबन्धों में पाठकों के बौद्धिक विकास की यथेष्ट मामग्री प्रस्तुत की गई। बीच २ में कहा कहः वर्णनात्मकता या भावात्मकता का पुट होने पर भी चिन्तनात्मक निबन्धकार उनके प्रवाह मे बहा नहीं है और अपनी विचार-व्यंजना के प्रति सदैव मावधान रहा है । गौरीशंकर हीराचन्द ओझा, रामचन्द्र शुक्ल, चन्द्रधर शर्मा गुलेरी, श्यामसुन्दरदास, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी अादि ने हिन्दी माहित्य के इस अंग की मुन्दर पूर्ति की। द्विवेदी-युग के चिन्तनात्मक निबन्ध तीन श्रेणियों में रचे जासकते हैं--व्याख्या भक, बालोचनात्मक और ५. 'सरस्वती', भाग ५ पृष्ठ १६२ । २. 'सरस्वती' भाग ७, पृष्ट ३६ । ३. 'नागरी प्रचारिणी पत्रिका', भाग १७ और १८ की अनेक संख्या में प्रकाशित । ४ चतुर्भुज औदीच्य, 'सरस्वती', भाग ५, पृष्ठ १८ । ५ एमसिंह सरस्वती भाग १३, पृष्ठ १८, और 11 ६ पासिंह सरस्वती माग १३ पृट ।
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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