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________________ [ रहह 1 म्हन-मन मे दूर रहकर मच्चे ज्ञान का प्रसार करें इस उद्दश की पूर्ति कवियों ये लिए एक जटिल समस्या थी। समाज के धर्म के ठेकेदार पंडित लोग थे । शिक्षा और दंडविधान आदि सरकार के हाथ में था जो जनसाधारण को कूपमंडक ही बनाए रखना चाहती थी । कवियों के पास केवल शब्द का बल था और विसा भय के प्रीति असम्भव थी। पीड़ितो के प्रति सहानुभूति और सन्मार्गियों को दिया गया नम्र उपदेश समाज को विशेष प्रभावित करने और सुधारने में अपर्याप्त था । इस न्यूनता को पूर्ति के लिए कवियों ने हास्य और व्यंग्य का सहारा लिया। जब कोई मार्गभ्रष्ट उपदेश और प्रदेशमे नही सुधरता तब कभी कभी उसका कठोर उपहास ही उसे सत्पथ पर लाने में समर्थ होता है । तत्कालीन समाज का संस्कार और रुचि इतनी गिर चुकी थी कि उसे जागृत करने के लिए कविया को लट्ठमार पति का अवलम्बन करना पड़ा । द्विवेदी युग के कवियों की राजनेतिक भावना मुख्यतः तीन रूपों मे व्यक्त हुई । नई पद्धति पर दी गई ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा, भारतीयों के विदेश गमन और विदेशियों के भारत में श्रागमम, विदेशी शासको द्वारा देश के श्रार्थिक शोषण आदि ने कवियो को तुलनात्मक दृष्टि से ग्रात्मसमीक्षा करने के लिए प्रेरित किया । फलस्वरूप उन्होंने देश की वर्तमान अधोगति के प्रति ग्लानि और क्षोभ का अनुभव किया । यह उनकी राजनैतिक भावना का पहला रूप था । इसकी अभिव्यक्ति तीन प्रकार से हुई । कही तो देश की दीनदशा का चित्राकन करते हुए उसके प्रति सहानुभूति प्रकट की गई, ' कही परिपीडक शासकों आदि के अत्याचारो का निरूपण किया गया और कही पतित तथा दीन अवस्था १ उदाहरणार्थ:-- २. यथा: अन्न नहीं अब विपुल देश मे काल पड़ा है ! पापी पामर प्लेग पसारे पाव पड़ा है । दिन दिन नई विपत्ति मर्म सब काट रही है । उदरानल की लपट कलेजा चाट 'सरस्वती' भाग नौकरीकी शाही सभ्यता का गत्ता काटती है. रही है | १४. संख्या १२ । गाधी के संगाती अंखियों में खटकत हैं। भारत को लूट कूटनीति को उजाड़ रही, जेलों मे स्वदेशभक्त न्याय के भिखारी ठौर ठौर भटकत है । हिसाहीन सजनों को, पेटपाल, पातकी, पिशाच पटकत कौन को पुकारें अब शंकर बचालो हमें, गोरे और गोरों के गुलाम श्रटकत है ॥ नाथूराम शर्मा मर्यादा, माग २२ ० ३ १० १३४
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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