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________________ कविता युग-निर्माता का नामन ग्रहण करने के पूर्व ही द्विवेदी जी ने हिन्दी-कवियों को युगान्तर करने की सूचना दे दी थी। अपने 'ऋविकर्तव्य' ( सरस्वती १६१६ ई.) लेग्य में उन्होंने ममय और ममाज की मचि के अनुमार सब बातो का विचार कर के कवियों को उनका कर्तव्य बतलाया था। द्विवदी जी की महत्ता इस बात में भी है कि उम लेग्ब म उन्होंने जो कुछ भी कहा था उमे सफलतापूर्वक पूर्ण किया और कराया। उपयुक्त मा पूर्ण लेग्व उद्बत करने का यहाँ अवकाश नहीं है । अतएव द्विवेदी जी की उम भविष्य वाणी और अादेश के मुख्य मुख्य वाक्या को लेकर ही उस युग की कविता की ममीक्षा की जायगी। द्विवेदी-युग ने हिन्दी नाहित्य के इतिहास में पहली बार पन और गध दोनो ही को काव्य-विधान का माध्यम स्वीकार किया। उस युग के कवियों ने हिन्दी साहित्य म अद्यावधि प्रयुक्त सभी विवानो मे कविताएं लिम्वीं। अपेक्षाकृत अधिक लोकप्रिय विज्ञान प्रबन्ध काव्य का था। इसके अनेक कारण थे । विश्व साहित्य की समीक्षा न यह बात मिट्ट हो जाती है कि ग्राम बोनियों में कविता का प्रारम्भ लोक गीता में और संस्कृत भाषाओं में प्रबन्ध काव्यों में हुया है। वाल्मीकि का गमायण', होमर का इलियड', आदि काव्य इस कथन के प्रमाण हैं। द्विवेदी-युग न्यु डी बोली कविता का प्रारम्भिक काल था, अतएव कथानक की महायता से ही कविता लिम्बना कवियों को अधिक सहज जान पडा। प्रबन्ध काव्य की विशेषताओं ने ही कवियों का ध्यान आकृष्ट किया । प्रबन्ध काव्य जीवन के तथ्यों को मूर्तरूप में उपस्थित कर देता है जिसने पाठक अनायाम ही प्रभावित हो जाता है । द्विवेदी जी के श्रादेश नुमार उस युगके उपदेश प्रवृत्ति प्रधान कवियों ने प्रबन्ध काव्यो मे अादर्श चरित्रों का अवलम्बन करके पाठकों को लाभान्वित करने का प्रयास किया। प्रबन्ध काव्यों के तीन रूप धे---पन्द्र प्रबन्ध, खंड काब्य और महाकाव्य । 'भूमिका' और 'कविता' अव्याय में पद्यनिबन्धी की विशेषता बदलाते हुए यह कहा जा चुका है कि व आधुनिक हिन्दी साहित्य में एक नृतन विधान के रूप में प्रतिष्ठिन हुए। द्विवेदो-युर के ५. "गध और पद्य दोनों ही में ही कविता हो सकती है।" द्विवेदी जी 'कविकर्तव्य'- सम्वनी १६०१ ई०, पृष्ठ २३२॥ २. "रसकुसुमाकर और जसवन्ननसोपण के समाननन्धों की इस समय आवश्यकता नहीं । इनके स्थान में यदि कोई कवि आदर्शपुरुष के चरित्र का अबलम्बन करके एक अचहा काव्य लिम्बता तो उसम हिन्दी साहित्य को अलभ्य लाभ होता।" करिम्मम्म' रसन्नरजन पूछ र
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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