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________________ २४६ । शब्द एक बचन म यमार त रहत हे व बहुवचन में भी यकारान्त ही रहेगे जैस किया किये , 'गया-गये' पर तु स्त्री लिग में गयी' न लिखकर ईकार स 'बाई' लिखा जाता है 'कहिए', 'चाहिए', देखिए' इत्यादि में एकार लिखा जाता है। अकारान्त शब्दो का बहुवचन एकारान्त होता हैं । जैसे 'हुना' का बहुवचन 'हुए' । जहाँ पूरा अनुस्वार बोले वहाँ अनुस्वार लगाया जाता है । जैसे 'संस्कार' और जहा अाधा अनुस्वार, जिसे उर्दू में नूनगुन्ना कहते हैं, बोले वहा चन्द्रविन्दु लगाया जाता है जैसे काँपना । सम्भव है, मेरी इस शैली से श्रापका मतभेद हो, परन्तु प्रार्थना यह है कि 'मरस्वती' के लिए जब लिखिए तब इन बातो का ध्यान रखिए।" अपने लेखों और वक्तव्यो मे उन्होने समय-समय पर अपने भाषा सम्बन्धी विचारों की अभिव्यक्ति की है। हिन्दी की वर्तमान अवस्था'२ में उमकी शब्द-ग्राहकता पर लिखा था "अाज कल कुछ लेखक तो ऐमी हिन्दी लिखते हैं जिसमें संस्कृत शब्दो की प्रचुरता रहती है । कुछ संस्कृत, अंग्रेजी, फारसी, अरबो सभी भाषाओं के प्रचलित शब्दों का प्रयोग करते हैं। कुछ विदेशीय शब्दो का बिलकुल ही प्रयोग नहीं करते, ढूढ-ढूढ कर ठेठ हिन्दी शब्द काम में लाते है । मेरी गय मे शब्द चाहे जिस भाषा के हो, यदि वे प्रचलित शब्द हैं और सब कहीं बोलचाल में प्राते हैं तो उन्हें हिन्दी के शब्द-समूह के बाहर समझना भूल है। उनके प्रयोग से हिन्दी की कोई हानि नहीं, प्रत्युत लाभ है । अरबी, फारसी के मैकडो शब्द ऐसे हैं जिनको अपढ श्रादमी तक बोलते हैं । उनका बहिष्कार किसी प्रकार सम्भव नहीं ।" साहित्य सम्मेलन (कानपुर अधिवेशन ) में स्वागताध्यक्ष पद मे दिये गए भाषण में भी उन्होंने हिन्दी की इस ग्राहिवाशक्ति का मंडन किया । 3 अपने उसी भाषण में उन्होंने हिन्दी भाषा और व्याकरण के अनेक विवाद-ग्रस्त विषयों का भी स्पष्टीकरण किया । ४ कारक-विभक्तियों के सम्बन्ध में उनका वक्तव्य था कि जिस शब्द के साथ जिस विभक्ति का योग होता है वह उसी का अंश हो जाती हैं। यह सन्य है, परन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि विभक्तियो को शब्दों से जोड़ कर लिखा जाय । १. 'सरस्वती' भाग ४०, संख्या २, पृ० ११२ । २. 'सरस्वती' भाग १२, संख्या १०, पृ. ४७३। ३ साहित्य सम्मेलन के कानपुर अधिवेशन में . साहित्य सम्मेलन के कानपुर अधिवेशन में पद से भाषण पृ. ४६ ५० पद से माषमा ५ से ६१
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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