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________________ अमेरिका भ्रमण (५) १६१२ यात्मोत्सर्ग | भारतीय दर्शन शास्त्र श्र पके पसन्द है अापको पसन्द है सत्यदेव म पर तीम लाग्न इमम तीस लाख ना बस के नहीं है जो "वश में नहीं है । उदरता को सिद्ध किया | उद्दडता सिद्ध की * घर में पहुँच कर कोवर पहुँच कर अनुराध पर अनुरोध से जानने के उत्सुक थे जानने को उत्सुक थे माहस होना परमावश्यक है माहस का होना परमावश्यक है| गणेशशकर विद्यार्थी गणों को होते हुये गुणों के होते हुए मिथिला से न्याय दर्शन का | मिथिला में न्याय दर्शन'.. | गिरिजाप्रमाद द्विवेदी अध्ययन करके माल्य दर्शन के आधार से माग्व्य दर्शनके आधार पर याय दर्शन बना है उसकी वृति बनाई । उस पर पनि बनाई शान के साथ में नाम, रूप" | ज्ञान के साथ नाम और रूप सन्य प्रभु के मत से जन्म, | चैतन्य प्रभु के मत मे जन्म | जमातर को पाकर जन्मान्तर पाकर स्नायु में श्राघान होने पर | स्नायु पर श्राधात होने से न टका को अतिरिक्ष नाटको को छाइकर सत्यदेव प्राधी सख्या हमारे देश | श्राधी संख्या हमारे देश में । + मूर्या स्त्रियों की है मर्मा स्त्रियां की है [ २३१ ] शिकागो का रविवार
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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