SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लस का स प्राथना , लेखमा का क्त्तव्य ' आदि लेखा द्वारा लेपका को चेतावनी दे दिया करत थ इतन पर भी जो 'सरस्वती' के लक्ष्य और मान 7 अनुपयुक्त रचनाए भेजता वह अवश्य ही तिरस्कार का पात्र था । लेखको के प्रति उनके सहृदयतापूर्ण व्यवहार का प्रमाण उन्हीं के शब्दों में लीजिए__"नरदेव शास्त्री-आप ऐसे ऐने रद्दी लेखी का स्वागत करते हैं, यह क्या बात है ? द्विवेदी जी--(मस्मित) द्वार पर आने वालों का स्वागत करना परमधर्म है और जिन महानुभावों को बार बार लिम्ब कर लेख मँगाया जाता है, उनका तो आदर आवश्यक ही - - - - - - - द्विवेदी जी ने अपने व्यक्तित्र, वाणी और मंशोधन की कठिन तपस्या द्वारा अनेक लेखको और कवियो को 'सरस्वती' का भक्त बनाया। कितने ही लेखक 'सरस्वती' की मुन्दरता, लोकप्रियता, ईदृक्ता और इयत्ता मे नाकृष्ट होकर स्वयं पाए । द्विवेदी जी के संपादन-काल के पूर्व अनेक हिन्दी-पत्रिकाओं ने अपने को विविध-विपया की मासिक-पुस्तक घोषित किया, 3 परन्तु उनकी वाणी कभी भी कम का रूप न धारण १. समय समय पर 'सरस्वती' में प्रकाशित २. 'हम', 'अभिनन्दनांक', एप्रिल, १९३३ ई० ३ (क) अपने को 'विद्या, विज्ञान, साहित्य, दृश्य, श्रव्य और गद्य, पद्य, महाकाव्य, राजकाज समाज और देश दशा पर लेख, इतिहास, परिहाम, समालोचनादि विविध विषय वारि बिन्दु भरित बलाहकावली" (माला ४,मेघ १, १६०२ ई०) समझने वाली 'आनंदकादंबिनो' की माला चार, मेघ ८-६ की विषय-सूची डम प्रकार थी१. मंपादकीय सम्मति ममीर, नवीन सम्वत्सर, उदारता का पुरस्कार, स्वामी रामतीर्थ, हर्ष, यथार्थ प्रजाहित, शोक!!! चैतन्यमय जगत । २. प्राप्ति स्वीकार वा समालोचना सीकर ३. माहित्य सौदामिनी लक्ष्मी। ४. काव्यामृत बर्षा--- अानंद बधाई, दिल्ली दरबार मित्र मंडली के यार । ५ निवेदन और सूचना । (ब) हिन्दी-प्रदीप' की घोषणा थी-विद्यानाटक, इतिहास, साहित्य, दर्शन, राजनम्बन्धी इत्यादि के विषय में हर महीने की पहली को छपता है ।" (जिल्द २५, संख्या १-२, जनवरी-फरवरी, १६०३ ई.) और विषय थे: १. हमाग पञ्चीसवा वर्ष २. ढोल के भीतर पोल ३ कान नन का लकर vोपी वमम मामा
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy