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________________ अपृण रही पहले वर्ष पाच सम्पादका क होत हुए भी उसका भार श्यामसुन्दर दास पर ही रहा सभा क तथा अन्य उत्तरदायि पृण काया म व्यस्त रहन क कारण व 'सरस्वती को अपेक्षित समय और शक्ति नहीं दे सकते थे । पहले दो अंको में पद्य, काव्य, नाटक, उपन्यास चम्पू आदि के नाम पर कुछ भी न निकला । तदुपरान्त भी नाममात्र को ही इनका समावेश हो सका । प्रारम्भिक विषय-सूची भी गडबड रही । लेखों के अन्त या प्रारम्भ में कहीं भी लेखकों का नाम नहीं दिया गया । सम्पादकीय टिप्पणी और विविध-विषय-जैसी वस्तु का अभाव रहा। हा, प्रकाशक का वक्तव्य अवश्य था, परन्तु वह उपर्युक्त अभाव का पूरक नहीं कहा जा सकता। उसकी भाषा का श्रादर्श भी अनिचिश्त था। १६०१ ई. में केवल श्यामसुन्दर दास ही सम्पादक रह गए। अपने एकाकी सम्पादनकाल (१६०१-२) में उन्होंने 'सरस्वती' का बहुत कुछ सुधार किया। १६०१ की मई मे ‘विविध वार्ता' और जुलाई से 'साहित्य समालोचना' के खंडो का श्रीगणेश हुअा। वर्ष भर की लेख-सूनी लेखको के नामानुक्रम मे प्रस्तुत की गई । १६०२ ई० की रचनाश्रो के अन्त म रचनाकारी के नाम और चित्रो के सुधार की ओर ध्यान दिया गया। लेग्नक-संख्या भी दूनी हो गई । द्विवेदी जी के लेखों और व्यंगचित्रो ने 'सरस्वती' के वर्धमान सौन्दर्य में चार चाद लगा दिये। आज यह अपने नये रंग ढंग, नये वेश विन्यास, नये उद्याग उत्साह और नई मनमोहिनी छटा से उपस्थित हुई है। - इसके नव जीवन धारण करने का केवल यही उद्देश्य है कि हिन्दी रसिको के मनोरजन के माथ ही साथ भापा के सरस्वती भंडार की अंगपुष्टि, वृद्धि और यथायथ पूर्ति हो, तथा भाषा सुलेखको की ललित लेखनी उत्साहित और उत्तेजित होकर विविध भाव भरित ग्रन्थराजि को प्रसव कर ।. और इस पत्रिका में कौन कौन से विषय रहेगे, यह केवल इसी से अनुमान करना चहिये कि इसका नाम सरस्वती है । इसमें गब, पद्य, काव्य, नाटक, उपन्यास चम्पू. इतिहास जीवनचरित, पत्र, हास्य, परिहास, कौतुक, पुरावृत्त, विज्ञान, शिल्प, कला कौशल आदि, साहित्य के यावतीय विषयो का यथावकाश समावेश रहेगा और अागत ग्रन्यादिकों की यथोचित समालोचना की जायेगी। यह हम लोग निज मुख से नहीं कह सकते कि भाषा में यह पत्रिका अपने ढग की प्रथम होगी। किन्तु हा, सहृदयो की समुचित सहायता और महयोगियो की सच्ची सहानुभूति हुई तो अवश्य यह अपने कर्तव्य पालन मे सफल मनोरथ होने का यथाशक्य उद्योग करने में शिथिलता न करेगी। इससे लाभ केवल यही सोचा गया है कि सुलेखकों की लेखनी स्फुरित हो जिससे हिन्दी की अगपुष्टि और उन्नति हो । इसके अतिरिक्त हम लोगों का यह भी दृढ विचार है कि यदि इस पत्रिका सम्बन्धीय सब प्रकार का व्यय देकर कुछ भी लाभ हुआ तो इसके लेखको की हम लोग उचित मेवा करने म किमी प्रकार बरि न करगे सरस्वती माग १ म. १ श्रारम्भिक भूमिका
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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