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________________ । १५१ मडन करने के लिए लेखनो नहीं उरई अतएव उनकी रचनामा को किसी वाद : उपनयन में देखने का माग सबथा पतित है। साहित्य और मनुष्यत्व मे बहुत गहरा सम्बन्ध है। द्विवेदी जी का कथन है कि साहित्य ऐसा होना चाहिए जिसके अाकलन से बहुदर्शिता बडे, बुद्धि की तीव्रता प्राप्त हो, हृदय में एक प्रकार की संजीवनीशक्ति की धारा बहने लगे, मनोवेग परिष्कृत हो जायं और अात्मगौरव की उद्भावना हो ।' महाकवि इस काम को समुचित रूप से कर सकते है । महाकवि वस्तुतः है भी वहीं जिसने उच्च भावो का उद्बोधन किया है। उसे भी प्राचार्यों के नियमो का न्यूनाधिक अनुशासन मानना ही पड़ता है । महाकवि का काव्य उच्च, पवित्र और मङ्गलकारी होता है । वह कवि के स्वान्तःमुखाय ही नहीं होता। वह परार्थ को स्वार्थ से अधिक श्रेयस्कर समझता है। उसका लक्ष्य बहुजनहिताय है ।३ अन्तःकरण में रसानुभूति कराकर उदार विचारो में मन को लीन कर देना कविता का चरम लक्ष्य है। कविता एक सुखदायक भ्रम है जिसके उपभोग के लिए एक प्रकार की भावुकता, सात्विकता और भोलेपन की अपेक्षा है। कविता कवि की कल्पना द्वारा अंकित अन्तःकरण की कृत्तियों का चित्र है।', सुन्दर कविता का विषय मनुष्य के जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध रखता है । वह उसकी आत्मा और श्राव्यात्मिकता पर गहरा असर डालता है। कवि की प्रतिभा द्वारा किया गया जीवन के सत्य का चमत्कारपूर्ण उपस्थापन अानन्द की सष्टि करता है ।७ कवि के कल्पना-प्रधान जगत् मे सर्वत्र सम्भवनीयता हूँढना व्यर्थ है ।८ कविता और पद्य का अन्तर स्पष्ट करते हुए द्विवेदी जी ने बतलाया कि वास्तव में कविकर्म बहुत कठिन है। वह पिगलशास्त्र के अध्ययन और समस्यापूर्ति के अभ्यास का ही परिणाम नहीं है। वह किसी एक ही भाषा की सम्पत्ति नहीं है ।१० उस सक्रान्ति-काल के हिन्दी-कवियों के लिए उन्होंने १ हिन्दी-साहित्य सम्मेलन के तेरहवेअधिवेशन के अवसर पर स्वागताध्यक्षपद से द्विवेदी जी द्वारा दिए गए भाषण के पृ० ३२ के आधार पर । २. 'समालोचना-समुचय', 'हिन्दी-नवरत्न', पृष्ठ २२८ के आधार पर । ३. 'समालोचना- समुच्चय', 'भारतीय चित्रकला', पृष्ट २६ के आधार पर । ४ 'रसशरंजन', 'कविता', पृष्ट ५५ के आधार पर । ५. 'रसज्ञरंजन', 'कविता', पृ० ५० के आधार पर । ६ विचार-विमर्श', 'अाधुनिक कविता के आधार पर । ७. रसज्ञरंजन', 'कवि बनने के सापेक्ष साधन', पृष्ठ २६ के आधार पर । ८. 'समालोचना-समुञ्चर', 'हिन्दी नवरत्न', पृष्ट २३८ के आधार पर। * 'रसशरंजन', 'कवि बनने के सापेक्ष साधन'- पृष्ट २० के आधार पर । [समुच्चय उदू शतक', पृष्ठ १३३ के आधार पर
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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