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________________ भगवान महावीर आपके विहारका पहला स्टेशन राजगृहीके निकट विपुलाचल तथा वैभार पर्वतादि पंचपहाड़ियोंका वह प्रदेश है जिसे धवलादि सिद्धान्त ग्रन्थों में 'पंचशैलपुर' नामसे उल्लेखित किया है। यहीं विपुलाचलपर आपका प्रथम उपदेश हुआ है- केवलज्ञानोत्पत्तिके पश्चात् आपकी दिव्यवाणी खिरी है और उस उपदेशसे तथा उसके समयसे ही आपके तीर्थकी उत्पत्ति हुई है, जिसे प्रवचनतीर्थ, धर्मतीर्थ, स्याद्वादतीर्थ, वीरशासन, अनेकान्तशासन और जिनशासनादिक भी कहा जाता है। उस समय इस भरतक्षेत्रके अवसर्पिणी-काल-सम्बन्धी चतुर्थकालके प्रायः (कुछ ही अंश कम)३४ वर्ष अवशिष्ट रहे थे तब वपके प्रथम मास प्रथम पक्ष और प्रथम दिनमें श्रावण-कृष्ण-प्रतिपदाको पूर्वाह्नके समय, जबकि रुद्रमुहर्तमें अभिजित नक्षत्रका योग हो चुका था, सूर्यका उदय हो रहा था और नवयुगका भी प्रारम्भ था, इस तीर्थकी उत्पत्ति हुई है। जैसा कि विक्रमकी ६वीं शताब्दीके विद्वान आचार्य वीरसेनकं द्वारा सिद्धान्तटीका 'धवला' में उद्धृत निम्न तीन प्राचीन गाथाओंसे प्रकट है:इमिस्सेऽवसप्पणीए चउत्थसमयस्स पच्छिमे भाए। चोचीसवाससेसे किंचिव सेसणए संते ॥१॥ वासस्स पढममासे पढमे पक्खम्मि सावणे बहुले । पाडिवदपुवदिवसे तित्थुप्पत्ती दु अभिजम्मि ।।२।। सावण-बहुल-पडिवदे रुद्दमुहुत्ते सुहोदए रविणो । अभिजस्स पढमजोए जत्थ जुगादी मुणेयद्य ॥३॥ __ और इस तरह महावीरके तीथको उत्पन्न ( अवतरित) हुए आज (चैत्रशुक्ला त्रयोदशी संवत् २०१२ को ) २५१८ वर्ष ८ महीने २७ दिन का समय बीत चुका है। 00:te
SR No.010412
Book TitleMahavira ka Sarvodaya Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages45
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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