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________________ धर्म-संस्करण २ 79 जमाने में दुनिया के विभिन्न धमों रे मन्पुरगणो ने और चरित-परायण सघो ने जो प्रयत्न निये है, उसी प्रेम से देनी चाहिये । उममे ध्येय धर्म-जागृति का और लोक-कल्याण ना होना चाहिगे, केवल पण्डिताऊ बहुश्रुतता का नहीं। अाज के ममाज का एक महान शेप वग-विग्रह। लोगो को प्या, हेप या मत्मर फरने के लिए कोई ध्यानमूति नारे। त्रिय को पुरुषों के बिनाफ, नौजवानों को वृटो के खिलाफ, गरीवो को अमीगे के गिलाफ हिन्दूमुसलमानो को एक-दूसरे के खिलाफ और गोरे लोगों को काले और पीले लोगो के खिलाफ लडना है। इस प्रकार मयं विरह कानडाई का वातावरण फैला हुआ है। वम या ज्यादा लोगो को मगठित गारगे उनमा नेतृत्व ग्रहण करने की नीयत हो, तो इसके लिए उन नर की पदि को केन्द्रित करके उन्हें हेप के पालम्वन के लिये एक ध्यानमूर्ति देकर मगय का और परायेपन का वातावरण सडा करना बहुत आमान है। ___ यह गेग धर्म में वडी गादी से घम नकाना है । प्राजकन इस दिशा में प्रवल प्रयत्न भी चल रहे है । न सव परिणाम पर हत्या और त मे आत्महत्या मे ही पायेगा । हम जिन धम-मम्करण का विचार करते है, उनमें इम गेग मे मुक्न रहने की पूरी सावधानी रगनी चाहिये । धर्म के बुरे तत्त्वों को दूर करते ममय उतना ध्यान में रखना चाहिये कि उनके स्थान पर शुभ, माचिक और ठोम तत्त्वो का धर्म में प्रवेश हो । केवल शून्यता, रिक्तता भयकर मिट्ट होती है। व्यवहार-कुशन लोग कहेंगे कि यह मारा विवेचन मुन्दर और उद्बोधक है, परन्तु इममे योजना जैमा कुछ भी दिखाई नहीं देता। विधान-मभा में कोई कानून बनाते समय पहले उमके उद्देश्यो का व्यवस्थित निस्पण क्यिा जाता है और उसके बाद ही उम कानून की धाराये आती है । परन्तु व्यवहार मे देखा जाता है कि कानून की धारायें हाथ मे आते ही उमका हेतु और उद्देश्य गौण वन जाता है और अन्त मे भुला दिया जाता है। समाज को ऐमी धारावद्ध योजना की पादत पड़ गई है । परन्तु इससे जीवन यात्रिक बन जाता है । भावना का स्थान योजना कैसे ले सकती
SR No.010411
Book TitleMahavira ka Jivan Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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