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________________ महावीर का विश्वधर्म 61 जिस जमाने में कही-कही मनुष्य का मांस खाने वाले भी लोग थे मनुष्य को गुलाम बनाकर वेचा जाता था, सैन्यो के बीच युद्ध होते थे और पशु मांस का आहार तो करीव सार्वत्रिक था । ऐसे जमाने में पानी मे और हवा मे जो सूक्ष्म जन्तु होते है उनके प्रति भी आत्मीयता बतलाना और सारे विश्व मे अहिंसा की स्थापना करने का अभिप्राय रखना और यह विश्वास रखना कि इतनी व्यापक अहिसा भी मनुष्य हृदय कबूल करेगा और किसी दिन उसे सिद्ध भी करेगा, यह उच्च कोटि की आस्तिकता है। ईश्वर पर या शास्त्र पर विश्वास रखना गौण वस्तु है । मनुष्य-हृदय पर विश्वास रखना कि वह विश्वात्मैक्य की अोर अवश्यमेव वढेगा, यह सबसे बडी आस्तिकता है । इसलिए मैंने भगवान् महावीर स्वामी को आस्तिक शिरोमणी कहा है। उनका जमाना किसी-न-किसी दिन पायेगा ही। आप हिन्दू का सकुचित अर्थ क्यो करते हे ? मनातनी, वैदिकधर्मी, सढिवादी तक हिन्दू धर्म मीमित नही है । श्रमण और ब्राह्मण, बोद्ध और जैन, लिंगायत, सिक्ख, आर्यसमाजी, ब्रह्मसमाजी आदि सब मिलकर हिन्दू समाज बनता है। इस विशाल हिन्दू परम्परा मे जीवन को अखण्ड और अनुस्यूत माना है। जीवन की यह अखण्ड धारा पवित्र है। सव के प्रति आत्मीयता रखनी है। सम पश्यन् हि सर्वथ समवस्थितमीश्वरम् । न हिनस्ति पात्मनात्मान ततो याति परा गतिम् ॥ यह गीता का श्लोक भी किसी भावना का एक उद्गार है। ऐमी व्यापक आत्मीयता मे ऊँच-नीच भाव और अस्पृश्यता को स्थान हो नहीं सकता। सनातनियो मे जो मलिनता आ गई थी, उसे दूर करने के लिए गौतम बुद्ध और महावीर जैसे धर्म-सुधारको ने वडा पुरुपार्थ किया। उन्ही के अनुयायी अगर संकुचित बन जाये तो कैमे चलेगा। रामटेक के जैन मन्दिर के द्वार पर अहिंसा के परम प्रचारक महावीर स्वामी के मन्दिर की रक्षा के लिए हिमा के शस्त्र और प्रतिनिधि क्यों या गये । इसलिये आये कि मन्दिर में महावीर के माथ उनके गहने भी है। यानि वहाँ कुवेर की उपामना हो रही है। सम्पत्ति को मैं लक्ष्मी नही कहूँगा। लक्ष्मी तो कुदरत की ममृद्वि है, पवित्रता की शोभा है । लक्ष्मी तो
SR No.010411
Book TitleMahavira ka Jivan Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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