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________________ 58 महावीर का जीवन सदेश इम तरह की श्रद्वा या अनुभव को इस धर्म ने अकित कर रखा है। फिर भी हिन्दू धर्म प्रचार-परायण (मिशनरी) धर्म नही है । सारी दुनिया में अपना प्रचार करने का हिन्दू धर्म का आग्रह नहीं है । हिन्दू अपने धर्म को अपने आचरण मे लाने का प्रयत्न करता रहता है। उसमे अगर उसे सफलता मिल गयी तो उसकी छाप पडौसियो पर पडेगी ही। यह समझ कर कि प्रभाव डालने के लिए जानबूझ कर कोशिश करने मे उतावली और अधीरता है, यानि जीवन का कच्चापन है, हिन्दू व्यक्ति अधिक प्रयत्न पूर्वक प्रात्मशुद्वि ही करता रहेगा। सामाजिक हिन्दू धर्म के मानी है इन सनातन तत्त्वो को अपने विशिष्ट समाज के अनुकूल बनाने का प्रयत्न करना । दूसरा समाज इन्ही तत्त्वो को अलग तरीके से अपने जीवन मे ला सकता है। हिन्दू धर्म के इन सनातन तत्त्वो को समाज में दाखिल करने के अनेक प्रयत्न इस देश मे हये है। रुढ सनातन धर्म इस देश के बाहर बिल्कुल नहीं फैला है । उसे फैलाने के प्रयत्न किसी समय हुये है या नहीं, इसका हमे पता नहीं है। इस देश मे ही उसे नष्ट करने के प्रयत्न हुये है और वे प्रयत्न निष्फल हुये है इतना हम जानते है । लेकिन रूढ सनातन पद्धति को छोड दूसरे ढग पर किये गये प्रयोग दुनिया मे अच्छी तरह फैल गये है। बौद्ध धर्म इस बात का सबूत है । यही सबसे पहला मिशनरी धर्म दिखाई देता है । इससे पहले अगर मिशनरी कार्य हुना हो तो उसका हमे ठीक-ठीक पता नही है । ऐसा भी लगता है कि वर्णव्यवस्था युक्त जीवन-धर्म प्रचार का धर्म हो ही नहीं सकता। (जीवन-धर्म यानि केवल मानने के लिए रचा हुआ धर्म नही, बल्कि जीने के लिए विकसा हुआ धर्म)। __ बौद्ध और जैन धर्म मे काफी भेद है, फिर भी दोनो मे साम्य भी कुछ कम नही है। दोनो मिशनरी धर्म होने लायक है दोनो विश्व-धर्म है । स्याद्वाद रूपी बौद्धिक अहिसा, जीवनदया रूपी नैतिक अहिंसा और तपस्यारूपी पात्मिक अहिंसा (भोग यानि आत्महत्या-प्रात्मा की हिंसा । तप यानि आत्मा की रक्षा-प्रात्मा की अहिंसा)। ऐसी विविध अहिंसा को जो धारण कर सकता है, वही विश्वधर्म हो सकता है। वही अकुतोभय विचर सकता है । 'यस्मान्नोद्विजते लोको लोकानोद्विजते च य' (जो लोगो से नही ऊवता, जिससे लोग नहीं कवते) यह वर्णन भी उसी पर चरितार्थ हो सकता है। ऊपर बताई हुई प्रस्थानत्रयी के साथ ही व्यक्तिगत एव सामाजिक जीवनयात्रा हो सकती है। प्रात्मा की खोज मे यही पाथेय काम पाने योग्य है ।
SR No.010411
Book TitleMahavira ka Jivan Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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