SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महावीर का विश्वधर्म [8] 'महावीर' नाम श्री विष्णु को दिया गया है । उनके वाहन गरुड को भी महावीर कहते है । श्री रामचन्द्र जी को भी महावीर कहते है और उनके एकनिष्ठ सेवक हनुमान भी महावीर ही है । आज हम श्री पार्श्वनाथ के अनुगामी श्री वर्धमान को महावीर के नाम से पहचानते है । 'महावीर' शब्द से कौनसा प्रर्थबोध होता हे ? सर्वत्र फैलकर, आसुरी शक्ति को हराकर विश्व का पालन करने वाले विष्णु महावीर हैं । अमृत प्राप्त करने की शक्ति रखने वाला मातृ भक्त गरुड महावीर है। पिता के वचन का पालन करने के लिए, प्रजा का कल्याण करने के लिए और धर्मनिष्ठा का आदर्श प्रस्थापित करने के लिए राज्य, सुख और पत्नी का त्याग करने वाले श्री रामचन्द्र जी महावीर हैं। किसी प्रकार के प्रतिफल की इच्छा रखे विना सेवा करने वाले और शक्ति का उपयोग शिव ही की सेवा मे करने वाले ब्रह्मचारी सेवानन्द हनुमान भी महावीर है । मातृभक्ति, सुख-त्याग, भूतमात्र के प्रति अपार दया और इन्द्रियजय का उत्कर्प दिखाने वाले ज्ञातृपुत्र वर्धमान भी महावीर है । आर्य जाति ने सर्वोच्च मद्गुणो की जिस मनोमय मूर्ति की कल्पना की है, जिस आदर्श को निश्चित किया है उस तक पहुँचने वाले व्यक्ति महावीर है । विजय प्राप्त करने वाला वीर है । जो अन्तर्बाह्य दुनिया पर विजय पाता है, वह है महावीर । वीर यानि श्रार्य और महावीर यानि अर्हत् । हिन्दू धर्म राष्ट्रीय धर्म है । एक महान् राष्ट्र का धर्म होने से उमे महाराष्ट्रीय धर्म भी कह सकते हैं। लेकिन हिन्दू धर्म के तत्त्व सार्वभौम है विश्व-धर्म के है । उनका प्रचार सर्वत्र होने लायक है । हिन्दू धर्म ने मनुष्य जाति का जीवन-धर्म खोज निकाला है । हिन्दू धर्म ने बहुत पहले से निश्चित कर रखा है कि क्या करने से मनुष्य जाति शान्ति से रह सकेगी, उसका उत्कर्ष होगा, तथा वह परम तत्त्व को पहचान कर उसे प्राप्त कर सकेगी । 'स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्' (इम धर्म का अल्प- सल्प ( पालन ) भी बडे-बडे भयो से रक्षा करता है) । 'न हि कल्याणकृत् कश्चित् दुर्गति तात गच्छति' (हे तात, शुभ कर्म करने वाले किसी की दुर्गति नही होती) । 'धर्मो रक्षति रक्षित' (जो धर्म का रक्षण करता है, उसकी रक्षा धर्म करता है) ।
SR No.010411
Book TitleMahavira ka Jivan Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy