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________________ नमन्वयकारी जैन दर्शन 117 उनगेनीम पहनान । प्राधिर जब परमपन्दर जाकर ठो है. नवा मोटर मंही नारी, पनुभर रोने ना है। मोट,हमारी मेरा है । म उगो नाम उठी गाने ग्यागोर पोर उगी गनि पब मारी गनि हु... नाना क्षागारोगा। जीया नाक्षागार को भी जो किरा पोर जग नमन्वयवृत्ति हर हमें मगारानी।। चौदिर क्षेत्र में न्याः नमा मिसा, सग पोटारसा। यह हा गयी बोकिर पा । समय पाटिसा समजाना है रिग नियमनी नीलिम पहिमाग में जर मगर मागे मी HIT . Tय उमीनातिना नष्ट होनी । पौरपहिया-ती वाता। जामान पा गरी पाप-पर-नारी नष्ट होना। फिर गौर गिरी गा करना' अगर रम हिमा परें नो र प्रपती री हिमानी। म्यागर प्रौर मनमगी न्यायम गमय में किस वोटिस भूमिका देने है । पोर पी भूमिका में शुद मान्न की पोर जाती है। अगर न सन पर शशि पन प्रेकर और जीया प्रेग्नि मागाहार निधन प्रपन गो मानिनी पंगा पोर ममन्वय मा पिकाग करेगा तो ममम्न दुनिया की प्राज मो मय गो गा ममम्गायेंन गे पो दृष्टि और प्रति उनमें प्रारंगी। जैन दर्शन पौर वेदान्त दर्शन पम्पर पूग्गा है, पोषक हैं। समन्वय निये दोनो अत्यन्त प्रावश्यमा ६ दलना गाक्षाकार होगा नब हम प्रागानी मे पागे यन गफेंगे । १ घस्नूपर १९६५
SR No.010411
Book TitleMahavira ka Jivan Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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