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________________ 116 महावीर का जीवन सदेश अन्धा कहता है हाथी छत के जैसा है, सूढ को पहचानने वाला हाथी को अजगर की उपमा देता है और हाथी के कान तो सूप के जैसे है ही। वे सव अन्धे, जहाँ तक उनका ज्ञान था, सही थे । लेकिन एक देश को सर्व देश समझाने की भूल वे करते थे । जैनियो का स्याद्वाद इन सब की एकागिता वताकर अन्धं के झगडो को मिटा देता है । स्याद्वाद नही कहेगा, खम्भा, छत, अजगर और सूप एक ही चीज है, सव अन्धो का अनुभव एक ही है, झगडा केवल शब्दो का ही है । स्याद्वाद अन्धो के वचनो मे एकवाक्यता लाने की कोशिश नहीं करता। स्याद्वाद कहेगा, इन अन्धो के अनुभव मे एकागिता होने से उनके वचनो मे परस्पर विरोध स्पष्ट है। अगर इन अनुभवो को दृष्टि दी जाये और उनको सारे पूरे हाथी का दर्शन हो जाय तो सब हँस पडेगे और कहेगे, हम क्यो दूसरो के अनुभव को तोडने गये थे । सबकी बात सही है, सिर्फ गलत है विरोध की कल्पना । यही खूबी है समन्वयवृत्ति की। समन्वय कहता है कि जीवन एक अद्भुत वस्तु है । इसका साक्षात्कार सब को अखण्ड होता ही रहता है, किन्तु आकलन की मर्यादा के कारण अथवा भूमिका मे स्थूल-मूक्ष्म श्रादि भेद होने के कारण आकलन मे फर्क आता है। उसे दूर करने का काम समन्वय का है । समन्वय ही मनुष्य को जीवन का सम्पूर्ण-परिपूर्ण ज्ञान पाने में मददगार होता है । __ कोई ऐसा नही समझें कि हमारे समन्वय से हम एकदम अन्तिम ज्ञान तक पहुंच जाते है। समन्वय से इतना तो बोध होता ही है कि ज्ञानप्राप्ति क्रमश होती है। हमारी साधना जैसे बढती है, अनुभव का क्षेत्र अधिकाधिक होता है, व्यापक, गहरा और विशाल होता जाता है । एक उदाहरण से यह बात स्पष्ट होगी। एक सीधे रास्ते पर से एक मोटर दूर से हमारी ओर पा रही है। प्रारम्भ मे मोटर का दर्शन विल्कुल सूक्ष्म, एक विन्दु के जैसा होता है । जब मोटर नजदीक आती है, तब मोटर का धब्बा बनता है और नजदीक प्रा गई तो हम पहचान सकते है, मोटर' का ही वह आकार हे । हम मोटर को ही देखते है । लेकिन उसके और नजदीक आने पर मोटर के भिन्न-भिन्न हिस्सेअवयव दीखने लगते है। मोटर का साक्षात्कार बढता जाता है। मोटर नजदीक आने पर उसका पूर्ण दर्शन होता है । उसके अन्दर बैठने वाले कौन
SR No.010411
Book TitleMahavira ka Jivan Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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