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________________ ५८] महावीर का अन्तस्तल सव सुसंस्कारी व्यक्ति हैं और अभाव का वह कष्ट नहीं है जिसके कारण मनुष्य दुराचारी नीतिभ्रष्ट होजाता है । फिर भी मुझे साधारण जनता को समझने और उनकी समस्या को सुलझाने के अवसर मिले हैं। घर के भीतर के ये अनुभव सम्भवतः निप्क्रमण के बाद न मिलपाते। मेरा काम श्रुतनान से नहीं चल सकता। क्योंकि श्रुति.. स्मृति सब पुरानी और निरर्थक होगई है । वे अपना काम अपने युग में कर चुकीं । मुझे तो प्रत्यक्षदर्शी बनना है, अनुभव के आधार से सत्य की खोज करना है, नये तीर्थ की रचना करना है, नया श्रत बनाना है। मेरे अनुयायी मेरे बनाये श्रुतज्ञान से काम चला सकेंगे। क्योंकि मेरा श्रुत आजके अनुभवों के आधार से होगा । और कई पीड़ी तक काम देगा । घर में पुराने श्रुतसे कास नहीं चला सकता, क्योंकि वह युगवाह्य होगया है। पर मेरे अनुभव जितने विशाल होंगे मेरे श्रुत की उपयोगिता भी अतनी विशाल होगी। आहंसा सत्य आदि का नाम लेने से या उसके गीत गाने से कुछ लाभ नहीं। जानना तो यह है कि इनके पालन के मार्ग में बाधाएँ क्या है, मानव स्वभाव और सामाजिक परिस्थितियाँ मनुष्यको कितने अंश में अहिंसा सत्य से भ्रष्ट होने के लिये प्रेरित करती हैं, कितने अंश में उनपर विजय पाई जासकती है, या अहिंसा सत्य को व्यावहारिक बनाया जासकता है-इसके लिये वाह्याचार को क्या रूप देना चाहिये? आचार का श्रेणी विभाग किस तरह करना चाहिये? . . ये सब बातें आज किसी पुराने इरुत से नहीं जानी जासकती, ये तो चलते फिस्ते संसार से ही जानी जासकती हैं। और घर में रहते में जान भी रहा हूँ। घर छोड़ने पर अनुभव तो होंगे पर घरू अनुभव जो घर में होरहे हैं वे वन में न होंगे। इसलिये देवी का मुझे रोकना भी एक तरह से सार्थक होरहा है।
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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