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________________ ५० ] महावरि का अन्तस्तल तात्पर्य स्पष्ट था | देवी को यह निश्चय हो गया था कि आज नहीं तो कल मैं वनगमन करने वाला हूँ, इसलिये देवी की इच्छा है कि मैं उन्हें वन में साथ रक्खूँ । अगर राम की सीतादेवी राम के साथ वनवास सकती है तो वर्द्धमान की यशोदा देवी बर्द्धमान के साथ क्यों नहीं कर सकती ? यही बात समझाने के लिये देवी अत्यधिक अनुरोध से मुझे रामलीला दिखाने लाई थी। राम के वनगमन में और वर्धमान के वनगमन में जो अन्तर है, उद्देश और परिस्थिति का जो भेद है, वह देवी के ध्यान में नहीं आरहा था ! अस्तु । रामलीला आगे बढ़ी। राम के साथ लक्ष्मण भी तैयार हुए राम ने बहुत मना किया पर लक्ष्मण न माने | लक्ष्मण का जोश खरोश, राजमहल के पत्रों के प्रति घृणा, कैकई के नामपर दाँत पसिना, दशरथ के न मपर भी जली कटी सुनाना आदि लक्ष्मण का अभिनय बहुत सुन्दर बन पड़ा था । इस विषय में भी राम का प्रमेपराजय हुआ । उन्हें लक्ष्मण को साथ रखने की अनुमति देनी पड़ी। इसमें सन्देह नहीं कि रामायण में लक्ष्मण का स्थान बहुत ऊँचा है । वे लक्ष्मण ही थे जिनने अपनी उदारता से बतलादिया था कि दो भाई मिलकर नरक को स्वर्ग बना सकते हैं, जंगल में भी मंगल कर सकते हैं । इसके बाद वह परम करुण दृश्य आया जिसमें लक्ष्मण अपनी पत्नी उर्मिला देवी से विदा लेते हैं । लक्ष्मण ने राम की उन युक्तियों को नहीं दुहराया, जिन्हें सीता देवी ने राम के मुँह से सुनकर काटदिया था । उर्मिला देवी ने जब दावा किया कि मैं जीजी ( सीतादेवी ) से कम कष्टसहिष्णु नहीं हूँ । तव लक्ष्मण ने बड़े मर्मस्पर्शी तरीके से कहा- देवि ! मैं तुम्हारी कष्ट. सहिष्णुता पर अविश्वास नहीं करता पर मुझे सेवा की जो
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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