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________________ ४८ ] चर्चा सुन रही थी । आते ही उनने अपने चेहरे पर मुसकुराहट लाने की चेष्टा करते हुए कहा- आर्यपुत्र को बधाई ! मैंने पूछा- किस बात की ? महावीर का अन्तस्तल देवी ने कहा- एक दिग्गज विद्वान को चुटकियों में परास्त करने की । मैंने हँसते हुए कहा - यदि दिग्गज विद्वान् परास्त न हुआ होता, आर्यपुत्र परास्त हुआ होता तो किसे बधाई देती ? देवीने निःसंकोच भाव से मुस्कुराते हुए तुरन्त कहा तो अपन को । मैंने मुसकुराहट को जरा बढ़ाकर कहा - बाहरे पति - प्रेम ! देवी बोली- पतिप्रेम है, इसीलिये तो ! मैं- इसीलिये तुम पतिका पराजय पसन्द करती हो ? देवी- अगर पराजय मिलन को स्थायी बना देनेवाला हो तो उसे पतिप्रेम की निशानी समझना चाहिये । यह कहते कहते देवी मेरी गोद पर लेट गई और फिर वोली म जानती हूँ कि आप बहुत ऊंचाई पर हैं पर न तो मुझ में उतनी ऊंचाई तक चढ़ने की ताकत है, न आपको दूर रखने की हिम्मत, इसीलिये आपको नीचे खींचने की धृष्टता करती रहती हूँ । इस घृष्टता के सिवाय मुझे कोई दूसरा उपाय ही नहीं सूझता । पिछले वाक्य बोलते समय देवी का स्वर बदलगया, आवाज रुंधे गले से आई और मेरी जाँघपर एक आंसू भी टपका । मैं देवी की पीठ पर हाथ फेरने लगा।
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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