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________________ २८ ] महावीर का अतस्तल rane.nnnnnu वतक्कड़ वासन्ती बोली-पर कुमार, कामदेव की आयुधशाला लूटते लूटत सखी की उंगलियां थक गई हैं। . मन कहा-तो तुम सर किसलिये हो? तुम से इतना , भी न हुआ कि सखी की उँगलियां दवाकर उन की थकावट दूर कर देती ? पर वासन्ती न तो लजाई न चुप रही। उसने तुरन्त ही उत्तर दिया- यह सब हम कर चुके । पर कोमलांगियों के दबाने से थकावट कैसे दूर होसकती है ? असके लिये कुमार सरीखे सशक्त हाथ चाहिये। __ सब का अट्टहास हवा मेंज गया और मैंने आगे बढ़. कर देवी के दोनों हाथ पकड़ लिये और उँगलियां दबाने लगा। देवी लजा गई, उनने उँगलियां छुड़ाने का नाट्य किया पर उँगलियां छुड़ाई नहीं, सब सुसकराने लगीं। गतवर्ष का वसन्त ऐसा हा रसीला था। . इस वर्ष का वसन्त फीका है। देवी ने मालाएँ इस वर्ष भी बनाई है, नृत्य भी हुए है, शृंगार भी किया जारहा ह, मुझे रिझाया भी जारहा है पर वह उन्मुक्तता नहीं है, जैसी प्रतिवर्ष रहा करता थी। देवी के चेहरे पर यह वात झलकने लगती है कि उन्हें इस काम में काफी श्रम हो रहा है। पहिले वे मुझे अपना माथी समझती थीं इसलिये मुझे बांधकर रखने का परि." श्रम उन्हें नहीं करना पड़ता था अब वे समझती हैं कि मैं भागने. वाला हूँ इसलिये वे सेवा से, शिष्टता से, विनय से मुझे वांधना चाहती हैं। अब मैं उनका सहचर नहीं, आराध्य हूँ। मेरा स्थान अव उनने पहिले से ऊँचा कर दिया है, इतना ऊंचा कि वसन्त का रस उतनी ऊँचाई तक चढ़ नहीं पाता । इस तरह अब वसन्त फीका पड़ गया है।
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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