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________________ महावीर का अन्तस्तल [ २७ ... यह कहते कहत देवी का गला भर आया, और मेरी ___ गोद में सिर छिपाकर वे फवक फवक कर रोने लगी। * आंखें मेरी भी भर आई और गला भी भरगया इसलिये में फिर कुछ कह न सका, स्नेह ले उनके सिर पर और पीठ पर हाथ फेरने लगा। बहुत देर में उसने सिर उठाया और भीगी. आंखों से मुझे देखने लगी। . वे भींगी आंखें मुझे इस समय भी दिखाइ दे रही हैं। ३- फोका बसन्त . १२ जिन्नी १४२८ इ. स. - इधर पंद्रह दिन से यशोदा देवी के व्यवहार में बहुत अन्तर देख रहा हूँ। प्रेम कम होगया है सो बात नहीं है किन्तु उसमें भय आशंका के मिलने से आदर बढ़ गया है। मेरी सूच. नाओं का तुरन्त जल्दी से जल्दी और ठीक ठीक पालन हो इसका अधिक से अधिक ध्यान रखा जाता है । .. मानों में घर का आदमी नहीं, बाहर का अत्यादरणीय अतिथि हूं ! मैं किसी असुविधा से जरा भी अप्रसन्न न होने पाउं इसकी पूरी चेताओं का फल यह हुआ कि इस वर्ष का वसन्त फोका जारहा है। ऐसी कोई घटना नहीं होरही है जिनके स्मरण मात्र से कभी कभी हृदय में गुदगुदी पैदा हुआ करती है। गत वर्ष ये ही वसन्त के दिन थे । देवी ने उस दिन सखियों के साथ मिलकर मालाएँ गूंथी थीं । इतने में पहुँचा मैं. मते हँसकर कहा--आज तो फूलों का ढेर इकट्ठा किया गया है. क्या कामदेव की आयुधशाला पर छापा मारा गया है ? मेरी वात सुनकर सब हँसने लगीं, कुछ लजाई भी, पर
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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