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________________ ३४] उनकी इस मांग को यह अन्तस्तल काफी अंशों में पूर्ण कर सकता है। पर्युपण में जो अन्धश्रद्धा पूर्ण महावीर-विन पढ़ा जाता है उनकी अपेक्षा यदि यह अन्तस्तल पढ़ा जाय तो जनधर्म सम. झने का, कथा साहित्य पढ़ने का, तथा काव्यरल का काफी आनन्द मिलेगा। . __.. जो लोग जैनधर्म का परिचय जैनेतर जगत में तथा विदेशोंमें देना चाहते हैं वे यदि इस अन्तस्तल को भिन्न भिन्न भाषाओं में ले जाकर फैलायें तो उनकी भी इच्छा पूरी होगी और दूसरों को भी काफी लाभ होगा। . .... मैं जानता हूं कि इस अन्तस्तल से कुछ या काफी अन्धश्रद्धालु लोग नाक मुँह सिकोडेंगे, निन्दा करेंगे, पर उनकी मुझे पर्वाह नहीं है, अनपर मैं ध्यान दूंगा तो इतना ही कि उनकी चेष्टाओं पर मुस्करा दूं या किसी ने कुछ दलील सरीखी बात कही तो उसका उत्तर दे दू । परन्तु बहुत से लोग ऐसे भी होंगे जो अन्तस्तल से प्रभावित होकर भी अपनाने में हिचकेंगे, वास्तव .. में दयनीय वे ही होंगे । परन्तु यदि कभी दुनिया को जैनधर्म और महावीर जीवन को ठीक तरह से समझने की जरूरत होगी तो इसी अन्तस्तल के दृष्टिकोण से समझना होगा। वर्तमान इसके साथ कैसा व्यवहार करेगा में नहीं कह सकता ., पर महाकाल इसके साथ न्याय करेगा इसकी मुझे पूरी आशा है । वह भाशा सफल होगी कि नहीं कौन जाने, पर उसका सन्तोप तो मुझे मिल ही रहा है। ४ टुंगी ११६५३ इ. सं. . . सत्यभक्त' १६ अगस्त १६५३ सत्याश्रम वर्धा Wi
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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