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________________ को महावीर का अन्तस्तल ३२३ ] बहुत कम करलिया । उसने जो मिथ्यात्व का प्रचार किया उससे उसे अनेक दुर्गतियों में भ्रमण करना पड़ेगा पर उसने जो पश्चात्ताप किया उससे उसकी सद्गति ही हुई है । गोशालक की मृत्यु के बाद जब गौतम ने मुझसे पूछा कि गोशालक मरकर कहां गया ? तब मैंने कह दिया कि बारहवें अच्युत देवलोक में गया है इससे उन लोगों को कुछ आश्चर्य हुआ । पर गोशालक की सद्गति से भी अधिक आश्चर्य हुआ उन्हें मेरी वतिरागता का अद्वेष वृत्तिका । ऐसे भयंकर शत्रु की सद्गति की बात वीतराग ही कह सकता है | ९० - मेरी बीमारी ४ धामा ९४५८ इतिहास संवत् यद्यपि मैं पर्याप्त स्थिरचित्त हूं, और यही कारण है कि जमाल और प्रियदर्शना के जाने की चोट और गोशाल के दुर्व्यवहार की चोट सहगया है फिर भी इन घटनाओं के विचार में कभी कभी रातरात नींद नहीं आती इसलिये पिछले छः माह से मैं बीमार रहता हूं । पित्त ज्वर भी है और खून के दस्त भी लग रहे हैं। मैं चाहता हूं कि यह बीमारी बिना दवा के ही अच्छी होजाय । आज तक मैने कभी दवा नहीं ली । खान पान के संयम से ही नीरोग होगया हूं । अगर उन्निद्रता की शिकायत न होती तो यह बीमारी भी अच्छी होगई होती । अस्तु आज नहीं तो कल ठीक हो ही जायगी । पर मेरी इस बीमारी की चर्चा चारों ओर फैल गई है। कुछ लोग तो यह कहने लगे हैं कि गोशालक की भविष्यवाणी सत्य सिद्ध होगी और महावीर का देहान्त इस मेडियग्राम के
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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