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________________ ३२२] महावीर का अन्तस्तल नगर में गली गली फैली। प्रत्येक चौराहे पर यह बात थी कि दो जिनों में खूर लदाई हुई है, एक दूसरे ने मरजाने के अभि. शाप दिये हैं। लोगों की इन बातों से मनमें कुछ अशांति है । ८ चन्नी ९४५७ समाचार मिला है कि गोशाल बीमार पड़गया है और पागल भी होगया है। उसके शिष्य गण उसके पागल प्रलाप के अच्छे अच्छे अर्थ करके उसका पागलपन ढक रह हैं। १३ चन्नी ६४५७ समाचार मिला है कि गोशाल का देहान्त होगया । सुनते है कि अन्त समय में उसे पश्चात्ताप हुआ था और उसके मुंह से यहां तक निकला था कि 'मैं मिथ्यावादी हूं पापी हूं कृतघ्न हूं गुरुद्रोही हूं मेरी लाश को रस्सी से बांधकर श्रावस्ती की सब सड़कों पर घसीटकर घुमाना चाहिये ।” सुनते हैं कि एक कमरे में श्रावस्ती का चित्र बनाकर उसके शिष्यों ने उसकी यह आज्ञा पूरी करदी है । और बाद में बड़े से बड़े समारोह के साथ उसकी अन्तक्रिया की है। गोशाल के जीवन की दुर्घटना मेरे जीवन की सव से बड़ी दुर्घटना है। आज तक कोई दुर्घटना मुझे विचलित नहीं कर सकी, पर उस दिन गोशाल के साथ चर्चा में मन कुछ विचलित हुआ पर थोड़ी ही देर बाद सम्हल गया। अब मैं गोशाल के विषय में पूर्ण समभावी होगया हूं। उसके जीवन पर एक तटस्थ की दृष्टि से विचार कर सकता हूं | उसने जो मेरे साथ दुर्व्यवहार किया और अपने जीवन की कमजोरी ढाकने के लिये शरीरान्तर प्रवेश का जो मिथ्यासिद्धांत निकाला वह अच्छा नहीं किया । पर मरते समय पश्चात्ताप करके उसने अपने पाप
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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