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________________ ३९४] महावीर का अन्तस्तल ---AAAAA इच्छा हो न लो। इसमें भगवान की अधिनायकता का प्रश्न ही नहीं है। जमालि-पर दूसरों की भी तो सुनना चाहिये। गौतम-जिस प्रकार वैद्य रोगी की बात सुनता है उस तरह सुनी ही जाती है। पर रोगी को वैद्य मानकर नहीं चला जाता। जमाल-क्या हम रोगी हैं ? गौतम-हां, जीवन की चिकित्सा कराने के लिये ही तो हम यहां आये हैं। भगवान के ऊपर दया करके नहीं आये है, अपने ऊपर दया करके आये हैं। जमालि- इसीलिये तो भगवान को घमंड होगया है । वे कहते थे कि मैं अकेला ही सन्तुष्ट हूं। जो मेरा साथ देने में अपना भला समझे, वह साथ दे, जो भला न समझे वह न दे। गौतम- यह ठीक ही कहा था। भगवान किसी के गले नहीं पड़ते । उनने अन्तरंग बहिरंग तपस्या वर्षों की, और उससे जो सत्य की खोज की वह जगत को देरहे हैं । लेने में जबर्दस्ती नहीं है। जिसे लेना हो ले, न लेना हो न ले। इस बात में तो भगवान की निस्पृहता दिखाई देती है। घमण्ड का इससे क्या जमालि-पर हम लोगों के शब्दों का कोई मूल्य न रहा। गौतम-भगवान किस किस के शब्दों का मूल्य करें। जगत में मिथ्यात्वी बहुत हैं इसीलिये क्या मिथ्यात्वियों के शब्दों का मूल्य करके सम्यक्त्व छोड़ दें। ___ जमाल- मैं मिथ्यात्वियों की बात नहीं कहता पर अपने संघ के लोगों की बात कहता हूं।
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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