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________________ महावीर का अन्तत्तल ३१३] -An • , से गौतम के पास गया था और गौतम को भड़काने की, विद्रोही बनाने की पूरी चेष्टा की थी। उसने गौतम से कहा था. अब मैं वाहर जारहा है। जो सत्य मुझे चाहिये था वह मैंने ले लिया । अब मैं यहीं कैद होकर नहीं रुक सकता, में आगे बढुंगा। गौतम-वांत तो अच्छीसी कह रहे हो जमालि, बताओ तो वह कौनसा सत्य है जिसे पाने के लिये तुग संघ छोड़ रहे हो और जो तुम्हें यहां नहीं मिल रहा है । और भगवान् के सन्देश में वह कौनसा असत्य है जो तुम्हें खटक रहा है। जमालि-सब से बड़ी खटकनेवाली बात है भगवान की अधिनायकता । आवश्यकता इस बातकी है कि संघमें सब का अधिकार हो । सब की वात सुनी जाय और बहुमत से निर्णय हो । अकेले भगवान की ही न चलना चाहिये सब की चलना चाहिये । राजनतिक क्षेत्र में मगध में गणतन्त्र है जिसमें सभी का अधिकार है तब धार्मिक क्षेत्र में क्यों नहीं? गौतम-धार्मिक क्षेत्र एक पाठशाला के समान है जहां सत्यासत्य के बारेमें अध्यापक की बात मानी जायगी छात्रों के वहुमत की नहीं । अथवा धार्मिक क्षेत्र चिकित्सालय के समान है जहां चिकित्सा के निर्णय में वैद्य की बात मानी जायगी रोगियों के बहुमत की नहीं । हां! रोगी अस वद्य से चिकित्सा कराने न कराने के लिये स्वतन्त्र है, छात्र अध्यापक से पढ़ने न पढ़ने के लिये स्वतन्त्र है। राजनीति में यह बात नहीं है । मनुष्य को राज्य का हुक्म मानना अनिवार्य है इसलिये राज्य के बारे में उसका मताधिकार भी जन्मसिद्ध है । पर भगवान का शिष्य बनना अनिवार्य नहीं है जिससे वहां जन्मलिद्ध मताधिकार मिलजाये । यह तो राजी राजी का सौदा है । इच्छा हो लो, न
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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