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________________ महावीर का अन्तस्तल [२६३ अपनी माता के हाथ से मिक्या मिलेगी। सारी बातों को देखते हुए यही होना स्वाभाविक था। पर हुआ उल्टा ही। दो वर्ष की कठोर तपस्या से शालिभद्र और धन्य के शरीर काले पड़गये हैं, शरीर की हड्डियाँ दिखाई देने लगी हैं. इसलिये जब ये लोग अपने घर भिक्षा के लिये गये तय किसी ने इन्हें पहिचाना भी नहीं । शालिभद्र की माता मेरे पास आने की तैयारी में थी, और अपने बेटे से मिलने के लिये उत्सुक थी। वह अपने वैभव के अनुरूप बड़े ठाठ से अनेक दास दाप्तियों के साथ सजे हुए यान में बैठकर यहां आना चाहती थी। और इस तैयारी में इतनी मन्न थी कि सामने खड़े हुए अपने बेटे और जमाई को भी न पहिचान सकी । न उस घर में उन्हें भिक्या मिल सकी । अन्त में अपने घर के द्वार पर थोड़ी देर खड़े रह. फर वे भूखे ही लौट आये। रास्ते में एक ग्वालिन मिली जो दही बेचने जारही थी। उसने इन दोनों को भूखा जानकर बड़े प्रेम से दही खिलाया। दही का भोजन कर ये मेरे पास आये। इनने सारी घटना ज्यों की त्यों सुना कर कहा-मगवन् । आपने तो कहा था कि आज माता के हाथ की भिक्या मिलंगी पर माता ने तो मुझे पहिचाना भी नहीं । भिम्पा तो एक वृद्धा ग्वालिन ने दी। आपका वचन असत्य कैसे हुआ भगवन् ? मैं काणभर रुका | फिर ध्यानावस्था में जो मैं असंख्य कहानियाँ अपने ज्ञानभण्डार में जमा करता रहा है उनमें से एक कहानी निकालकर प्रकरण के अनुकूल बनाकर सुनाई। - "इसी राजगृह नगर के पास शालीग्राम में एक गर्गर ग्वालिन रहती थी। किशोरावस्था में ही उसको एक पुत्र हुआ
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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