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________________ २६२] महानार का अन्तस्तल प्रजा, सत्र अहमिन्द्र हैं सभी देव इन्द्र के समान सुखी है, इसलिये अहमिन्द्र कहलाते हैं। उनकी आवश्यकताएँ कम है और वे अपने आप पूरी होजाती हैं, शुसके लिये दास दासियों की जरूरत नहीं होती। ऐसे अहमिन्द्र लोक ही अन्तिम देवलोक हैं। अन्तिम देवलोक का नाम सर्वार्थासार्द्ध है। . पोग्गल-बहुत ठीक कहा भगवन आपने, बहुत ही तर्फयुक्त कहा भगवन आपने, अब आप मुझे अपना श्रमण शिष्य समझं। पोगगलपरिव्राजक ने मेरी शिष्यता स्वीकार करली । नागरिकों पर इस बात का बड़ा प्रभाव पड़ा। यहां के सब से पड़े श्रीमन्त चुल्लशतक और झुसकी पत्नी बहुला ने मेरी उपा. सकता स्वीकार की। ८१-चतुाता का उपयोग २८ धामा ९४४१ इ. सं. अपने अठारहवे चातुर्मास के लिये मैं फिर राजगृह आया। दो वर्ष पहिले इसी नगर में शालिभद्र नाम के एक धीमन्त युवक ने दीक्षा ली थी। साथ में उसके बहनोई धन्य ने भी दीक्षा ली थी। दो वर्ष बाद वे मेरे साथ फिर राजगृह नगर आये हैं । शालिभद्र की माता भद्रा की गिनती इस नगर के मुन्य श्रीमन्तों में है । वह अवश्य अपने पुत्र से मिलने को उत्सुक होगी और शालिभद्र भी माता से मिलने की सुन्सुकता छिपा न सकेगा, इसलिये यह भिक्षा लेने अपनी माता के घर ही जायगा । इसलिये जव शालिभद्र मेरे पास भिक्षा के लिये नगर में जाने की अनुमति लेन आया तब मैंने सहजभाव से कार्य कारण के नियम का ध्यान रखकर कह दिया, कि आज तुम्हें
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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