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________________ 2 ** [ २८९ साध्वी गण प्यास से व्याकुल था । सब की इच्छा थी कि पानी निर्मल है इसलिये पी लिया जाय । एक ने मुझ से पूछा । पर मैंने मना कर दिया | महावीर का अन्तस्तल यह क एक दिन का है, पर तालाबों से इस तरह पानी पीने की अनुमति दे दी जाय तो कल से साधु स्वच्छ अस्वच्छ का विचार न कर जिस चाहे तालाब का पानी पीने लगेंगे और तैरने तथा छलने कूदने भी लगेंगे। सारी मर्यादा नए होजायगी । यह प्रसन्नता की बात है कि सब साधु साध्वियों ने अनुशासन का पूरी तरह पालन किया । ८०-देव लोक की अवधि ५ जिन्नी ९४४६ इ. स. वाणिज्य ग्राम १७ वां चातुर्मास पुग कर मैं बनारस आया यहां के जितशत्रु राजा ने पर्याप्त सम्मान किया । बनारस के ईशान कोण में कोष्ठक चैत्य में ठहरा और अपने मत पर प्रव चन किये। कुछ लोगों ने मेरा प्रवचन स्वीकार किया और गृहस्थोचित करत भी लिये । चुल्लती पिता और उसकी पत्नी श्यामा, और सुखदेव और उसकी पत्नी धन्या, ये दो श्रीमन्त दम्पति इनमें मुख्य रह । फिर भी मैं जैसी चाहता था वैसी सफलता यहां दिखाई नहीं दी । सत्यप्रचार के लिये साधु एक भी न मिला । इसलिये काशीराज्य में थोड़ा विहार कर राजगृह की ओर लौटा और मार्ग में इस आलाभिका नगरी के शंख वन में ठहरा हूं । गौतम जब भिक्षा के लिये नगर में गये तब उन्हें मालूम हुआ कि यहां पोग्गल नाम के परिव्राजक का काफी प्रचार है । वह कहता फिरता है कि मुझे अपने दिव्यज्ञान से सारा देवलोक दिखाई देता है । अंतिम देवलोक ब्रह्मलोक है । यस, इतनीसी
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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