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________________ महावीर का अन्तस्तल [२७७ मैंने गम्भीरता से कहा-आओ मां । तुम्हारे बेटे ने जो धर्म की कमाई की है वह ग्रहण करो! देवानन्दा स्त्रियों के समूह में बैंठगई ? तब इन्द्रभूतिने पूछा-भगवन् क्या देवानन्दा आपकी मां है ? । मैंने कहां-हां ! एक तरह से मेरी मां ही है । शैशव में इनके शरीर से मेरा पोषण हुआ है, इनने मां की तरह मुझे प्यार भी किया है। जब मैं पैदा हुआ तब मेरी जननी त्रिशलादेवी को दूध नहीं आया। क्योंकि जननी रुग्ण होगइ थी। तब देवानन्दा ने ही व्यासी दिन तक मुझे दूध पिलाया। और व्याली दिन तक मैं इन्हीं की गोद में रहा । चिकित्सकों का कहना था कि इस रुग्णावस्था में बालक को मां के पास न रहने देना चाहिये। इसलिये में दिनरात देवानन्दा के ही पास रक्खा गया । जननी की बीमारी काफी उग्र थी, उन्हें कोई सुध न रहती थी, किन्तु जब उन्हें सुध आती थी, तब वे बालक के लिये चिल्लाने लगती थी तब सुनके पास देवानन्दा की नवजात पुत्री रेशमी दुकूल में . लपेटकर रखदी जाती थी इस प्रकार देवानन्दा ने मुझे अपना दूध ही नहीं पिलाया, गर्भ के समान मुझे दिनरात अपनी गोद में ही नहीं रक्खा, किन्तु एक तरह से व्यासी दिनतक शिशुओं की अदलाबदली भी सहन की। इसकारण ले ये मेरी मां बनी। और मां की तरह इनने जीवनभर स्नेह भी किया। - जब एक नैगमेषी नाम के वैद्य की चिकित्सा से मेरी जननी स्वस्थ होगई तब मैं उनके पास रक्खा जाने लगा। मेरे छिन जाने से इन्हें बड़ा दुःख हुआ। ये मालंकारिक भाषा में कहा करती थीं कि नैगमेषी ने व्यासी दिन बाद मेरा गर्भ हरण कर लिया या बदल दिया । बहुत से भोले लोग तो इनकी बात
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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