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________________ महावीर का अन्तस्तल [२३५ का प्रारम्भ हो रहा है यह बहुत अच्छी बात है, क्योंकि वह हर तरह योग्य है। इस छोटीसी उम्र में ही असने जीवन के सुतार चढ़ाव देखलिये हैं इमलिये साध्वी संघ में वह स्थिरता से रह सकेगी, दूसरो को स्थिर रख सकेगी और साध्वी संघ का. संचालन कर सकेगी। ७१ सफल प्रवचन ७ टुगी ६४४१ ई. सं. आज प्रातःकाल के प्रवचन में राजग्रह के बहुत से प्रति. ष्ठित व्यक्ति उपस्थित थे। गजा श्रेणिक थे, गजपुत्र अभय कुमार मेघकुमार नन्दिपेण थे. श्रेष्ठीवर्ग था, सन्नारीवर्ग भी था। आज का प्रवचन दार्शनिक नहीं था.किन्तु धर्मप अर्थात् चारित्ररूप था। दर्शनशास्त्र तो इसी चारित्र या धर्म के लिए है। मन कहा. संसार में चार चीजें बहुत दुर्लभ है। १-मनुष्यत्व, २-सत्यश्रवण, ६-सत्यश्रद्धा, ४-संयम । संसार में अनन्त प्राणी दिखाई देरहे हैं उसमें मान्य बहुत थोड़े हैं। यह कहना चाहये कि अनन्त में एकाध प्राणी ही सनुष्य जन्म पापाता है ऐसी हालत में उसकी दुर्लभता का क्या ठिकाना । फिर यह तो मनुप्य शरीर को दुर्लभता हुई । मनुष्य शरीर हाने से ही मनुप्यता नहीं आती । सनुप्यता आती है समझदारी से. विवेक से। बहुत से प्राणी मनुष्य का शरीर पाकर भी समझदारी नहीं पाते, इसप्रकार मनुष्य शीर पाकर भी मनु यत्व अन्हें दुर्लभ रहता है. तुम्हारे लिये यह प्रसन्नता की बात है कि तुमने - यह अत्यन्त दुर्लभ मनुष्यत्व पालिया है। . . ... पर इतने से भी जीवन लफल नहीं होसकता । जब तक सत्यश्रवण का अवसर न मिल तब तक मनुष्यत्व भी व्यर्थ है।
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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