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________________ २६४ महावार का अन्तस्तल अयं आप मुझे अपना शिष्य समझें । - इसप्रकार आज ये ग्यारह विद्वान मेरे शिष्य होगये हैं। अब सत्य का प्रचार बहुत अच्छे तरीके से होगा। इसने इन विद्वानों का भी झुद्धार हुआ और जगत् का भी उद्धार होगा। ७०- साधासंघ २६ इंगा ९४४४ इतिहा र संरत कल प्रथम पोरली के बाद चन्दना आई। झुमे यह समाचार मिल गया था कि मैंने तीर्थस्थापना का कार्य प्रारम्भ कर दिया है इसलिये बह शातानिक राजा के प्रयत्न से यहां आगई और आते ही उसने दीक्षा लेने की बात कही । आखिर मुझे साध्वी संघ की स्थापना भी तो करनी है, क्योंकि नागसमाजमें काम करने के लिये साध्वी संघ के विना काम न । चलंगा, तथा नारियों तक मेरा सन्देश पहुंचे बिना क्रांति न होगी। क्योंकि मेरी क्रांति का असर लिर्फ पुरुषों के जीवन या . बाहरी जीवन तक ही नहीं होता है किन्तु घर के भीतर तक पचना है तभी महिमा का सन्दा सफल होगा। घर के भीतर तो नार्गका राज्य है इसलिये वहां तक सन्देश पहुँचना ही चाहिये । उसके लिये साध्वीलंघ तथा प्राविका संघ बनाना होगा। इसके मिवाय एक बात और है और वह पर्याप्त महत्व की है कि आन्मोद्धार तथा धर्म जैस पुरुष के लिये आवश्यक है वैसे नारी के लिये भी आवश्यक है । आर्थिक दृष्टि से तथा गृह व्यवस्था को दृष्टि से नर नारो का कायक्षेत्र भले ही भिन्न भिन्न हो परन्तु धर्म आत्मविकाल आदि की दृष्टि से दोनों में कोई अन्ता नहीं है, दोनों का स्वतन्त्रता ले इसके लिये प्रयत्न करना चाहिये । इसलिये नारी के लिये साम्बी संघ और श्राविका संघ बनाना आवश्यक है । चन्दना सरीखी लड़की से साध्वी संघ
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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