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________________ । अन्तस्तल [२४१ ... . .w.rim मालनता इतनी अधिक हो सकती है कि वे मिथ्यात्वीं कहे जास: कते हैं । जिनकी कपाय वासना वर्षों तक स्थायी हो, और जिन्हें कर्तव्य अकर्तव्य का विवेक न हो, चे मिथ्यात्वी हैं । २- यह गुणस्थान मुझे कुछ पीछे सूझा । एक प्राणी सचाई पाकर उससे भ्रष्ट भी हो सकता है, और उसके इस पतन का कारण हो सकता है कषाय वासना की तीव्रता । निःसन्देह कपाय की तीव्रता होने पर प्राणो का विवेक या सम्यक्त्व तुरन्त नष्ट होजायगा पर जितने क्षणों तक मिथ्यात्व नहीं आपाया है सुतने क्षण की अवस्था यह गुणस्थान है। यह सम्य. क्त्व से पतन की अवस्था है, पहिली श्रेणी से उत्क्रांति की अवस्था नहीं। इसलिये इसका नाम मैंने सासादन रक्खा है । बासादान का अर्थ है विराधना, एक तरह का विनाश । ३- यह सम्यस्त्व की ओर झुकी हुई. सम्यक्त्व और मिथ्यात्व के बीच की अवस्था है। यहां कपाय वासना बहुत लम्बी नहीं है पर पूरा विवेक भी नहीं है मिश्रित अवस्था है । इसलिये यह मिश्र गुणस्थान कहलाया। -जिसने सम्यक्त्व पालिया, और उसके अनुरूप वह कषाय वासना, जो अनन्तं दुर्गाते देती है, इसलिये जिसे मैं अनन्तानुबन्धी कषाय कहता हूं, न रही वह सम्यकवी है। जीवन का वास्तविक विकास यहीं से शुरू होता है । पर व्यवहारोपयोगी संयम इसमें नहीं आपाया, आखिर यह विकास का प्रारम्भ ही है इसलिये इसे असंयत सम्यग्दृष्टि कहता हूं।' बाल्यावस्था में मैं इसी गुणस्थान में था। इसके पहिले के तीनों गुणस्थान तो मैं दूसरे प्राणियों की अवस्था के ज्ञान से कहता हूं, मनोवैज्ञानिकता के आधार से कहता हूं। सम्भव है में इन अवस्थाओं में से गुजर चुका होऊ पर मुझे उन.अवस्थाओं का .
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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