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महावीर का अन्तस्तल
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उस दिन पालक ग्राम में भायल नाम का वैश्य मेरे ऊपर नलवार लेकर मारने दौड़ा था जब कि इसके पहिले सुमंगल और सत्क्षेत्र नाम के ग्रामों में वहां के ब्राह्मण क्षत्रियों ने मेरी वन्दना की थी। इसलिये अब श्रमण ब्राह्मण का भेद करना व्यर्थ है। मुझे जो क्रांति करना है उसमें मुझे ब्राह्मण और ब्राह्मणेतर का कोई भेद नहीं करता है । बल्कि अचरज नहीं कि इस कार्य में मुझे ब्राह्मणों से ही अधिक सहायता मिले । . . कुछ भी हो । अब की बार का यह चौमासा मैने चम्पा नगरी के स्वातिदत्त ब्राह्मण की अग्निहोत्रशाला में किया है । एक श्रमण को अपनी यनशाला में चातुर्मास की अनुमति देकर जहां ब्राह्मण ने उदारता का परिचय दिया है वहां मैंने भी ब्राह्मणों से सहयोग का विचार किया है ।
ब्राह्मण ने जगह तो दे दी, पर कोई विशेष आदर व्यक्त नहीं किया। हां ! पूर्णभद्र और मणिभद्र नाम के दो व्यक्ति अवश्य मेरे पास आते हैं और कुछ प्रश्न पूछते हैं । इससे स्वातिदत्त को भी कुछ जिज्ञासा हुई और उसने आत्मा के विषय में पूछा।
मैंने कहा-जड़ तत्व के समान चेतन तत्व भी एक स्वतन्त्र तत्व है उसे आत्मा जीव चेतन आदि किसी भी नाम से कह सकते हैं । वह एक नित्य द्रव्य है।
ब्राह्मण ने पूछा-पर वह है कैसा? . .
मैंने कहा-ब्राह्मण, क्या तुम चाहते हो कि मैं तुम्हें जीव के लिये कोई ऐसी झुपमा दूं जिसे तुम इन्द्रियों से ग्रहण कर सकते हो?
ब्राह्मण ने कहा-हां ।