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________________ ___ महावीर का अन्तस्तल ......[ २२१ wrn.inwww. ६० - शुभत्व के दो किनारे २२ मुंका ९४४२ इ. सं. सब से नीची श्रेणी का शुभ, जो अशुभ के बिलकुल पास है. और सब से ऊंची श्रेणी का शुभ, जो शुद्ध के बिलकुल पास है. दोनों के उदाहरण कल अकस्मात् ही देखने को मिल गये । इसप्रकार शुभत्व के दोनों किनारों से, या सीमा की रेखाओं से जीव के अशुभ शुभ और शुद्ध परिणामों का (पाप पुण्य मोक्ष का) ठीक ठाक विभाजन होगया। इस चातुर्मास में जिनदत श्रेष्ठी मेरे पास प्रायः आता रहा ह । एक दिन यह बहुत श्रीमन्त व्यक्ति था पर आजकल बहुत गरीव है, यहां तक कि लोगोंने इसका नाम ही जीर्ण श्रेष्ठी रख लिया है । पर इसकी गरीवी ने इसकी धार्मिकता तथा सुदारता में कोई अन्तर नहीं किया है, यथाशक्ति अधिक से अधिक अदारता का परिचय यह आज भी दिया करता है । भले ही अस उदारता से इसका आर्थिक संकट बढ़ जाये। अत्यन्त धार्मिक गृहस्थ होने पर भी इसके यहां में भोजन करने नहीं गया। क्योंकि मैं जानता हूं कि यह मेरे लिये अपनी आर्थिक शक्ति से अधिक खर्च कर जायगा । मेरा उद्दिष्ट त्याग इसीलिये ऐसे भोजन से मुझे दूर रखता है। फिर भी जाते जाते कल यह मुझे भोजन का निमन्त्रण दे ही गया । इसे मालूम नहीं कि मैं भोजन का निमन्नग स्वीकार नहीं करता। मैं दसरे सेठ के यहां भोजन करने गया। वह धन के मद में मत्त था । मुझे देखते ही उसने दासी को आज्ञा दी कि इस भिक्षुक को भिक्षा देकर जल्लो. विदा करदे । दासी एक लकड़ी के पात्र में दाल के छिलके और भुसी का भोजन लेकर आई । मैंने अपने करतल पर झुसी का भोजन लिया। मैं भोजन
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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