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________________ [२१ घटना ठीक बनगई है । कुछ लोग समझात है कि महावीर सरीखे गम्भीर प्रकृति के महामानवब के मन में पंसे शुद्र आदमी से संघर्ष करने की बात टोक नहीं मालूम होती । टोक हो या न हो पर नाना कल्पनाओं से भी महावीर की प्रशंसा, करनेवा जैन शास्त्र यदि ऐसी घटना का उल्लेख करते हैं तो इससे वे महावीर जीवन के किसी तथ्य को प्रगट करने में ही विवश होजाते हैं। ऐसी घटनाएँ झुटी नहीं कहा जासकती। म. महावीर फ्रांतिकारी थे, दम्भ और अन्धविश्वास के विरोधी थे ऐसी हालत में यह स्वाभाविक है कि वे ऐले मांडा के भण्डाफोड़ के लिये तत्पर होजाय । महामानव तुका आद. मियों से बात नहीं करते या रनले आवश्यक संघर्ष नाही कग्नं ऐसी बात नहीं है । सास फर साधक जीवन की प्रारम्भिर अवस्या में ऐसी घटनाएं स्वाभाविक हैं और अमुक अंग में आवश्यक भी। ९- वस्त्रटने की बात जन शाखोक्त। १०- २७ वे प्रकरण में चउकोशिक सर्ग की घटनाओं को अलौकिक चमत्कार तथा पूर्व जन्म की बाधा से जोड़ दिया गया है । मैंने घटना नो ज्यों की त्यों रखी । पर चराग को हटाकर मनोवैज्ञानिक आधार पर घटना को सुनंगा : दिया है। ११- २८ व प्रकरण में शुद्धादार की घटना शोना है। मांसविरोध की उक्तियाँ, तदनुसार चित्रण और वानीलार मेरा है। १२- २९ वें प्रकरण की घटना भी शारजोता है पर उसका कारण बनाने में महावीर की प्रकृति के अनुल विचार मेरे हैं। इससे म. महावीर की निस्पृहता में चार रांद लगे हैं।
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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