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________________ २०] विवाह हुआ और उससे प्रियदर्शना नाम की पुत्री पैदा हुई, पर इल अन्तस्तल में यशोदा के लिये ७० पृष्ठ रुके हैं। इससे अन्तस्तल रसीला ही नहीं होगया है किन्तु महावीर जीवन की अनेक घटनाओं को सम्भव तथा महत्वपूर्ण और आवश्यक बना. गया है। पाठक पढ़कर ही इसकी विशेषता और महत्ता समझ सकेंगे। । ३- बीसवें प्रकरण में रसलमभाव की घटना जैन शास्त्रों की है मानसिक चित्रण मेरा है जो जन शास्त्रों के • अनुकूल है। ४-२१ वे प्रकरण में युवतियों का प्रलोभन जैन शास्त्र वर्णित हैं । उपयुक्त समय समझकर केश लौच का विधान बना दिया गया है जो जैन साधुता के लिये आज भी अनिवार्य बना हुआ है। ५-२२ वें प्रकरण ने प्रदर्शन परिषद की उपयोगिता बताई गई हैं जो स्वाभाविक है। ६- २३ चे प्रकरण में तापसाश्रम की घटना जैन शास्त्रों की है यहां तक कि संवाद के खास शब्द भी वहीं के हैं। बहुत से जैनों को इसमें महावीर की लघुता होगी पर वह बिलकुल स्वाभाविक है और इससे महामानव की महत्ता को धक्का नहीं लगता। ७-२४ वे प्रकरण में शूलपाणि यक्ष की घटना शास्त्रोक्त । है पर उसकी कल्पित दिव्यता दूर कर उसे वैज्ञानिक बनादिया गया है। --- २५ वे प्रकरण की घटना भी शास्त्रोक्त है पर उसमें अवधिज्ञान और इन्द्र को लाने की बात बेकार है। म. महावीर की मनोवैज्ञानिकता और सूक्ष्म निरीक्षकता से वह
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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