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________________ महावीर का अन्तस्तल । २११ ५५ - दासता की प्रथा १ मुका ६४४१ इ. सं आज की सामाजिक और आर्थिक समस्याओं में दासता की समस्या भी एक समस्या है । मनुप्य को पशु के समान दाल बनाकर रखना, यहां तक कि सुसे पशु-समान चना खरीदना, मनुष्यता का बड़ा से बड़ा कलंक हैं। पशु में इतना ज्ञान नहीं होता, न उसे पूरी तरह उसका उत्तरदायित्व समझाया जासकता है कि जिलले हांक विना अपना कर्तव्य पूरा कर सके. इसलिये पशु को दास बनाकर रखना एक तरह का अपराध होने पर भी अन्तव्य है। पर मनुष्य तो अपना उत्तरदायित्व समझता है. .भापा समझता है, तब उसे दास बनाना क्षन्तव्य नहीं कहा जासकता। पर इस दासप्रथा को जड़ गहरी है । आज इसे इकदम निमल नहीं किया जासकता। हाँ ! एक न एक दिन यह जायगी अवश्य, क्योंकि दासों की पशुता दासों को ही दुःखद नहीं है दास-स्वामियों को भो दुःखद है । दामों को कार्य में काई आकपण या रुचि न होने से वे आधिक हानेि आर कम से कम काम करते हैं और इसके लिय प्रेरित करने में और ध्यान रखने में इतना कष्ट होता है कि दास रखना पर्याप्त महायं मालूम होने लगता है। इसको अपेक्षा भृतिजीवी व्याक्त आधक व्यवस्थित काम करते हैं । इसालेये एक न एक दिन दासा का स्थान मृतिजीवी लोग ही लेलेंगे । परन्तु जब तक वह समय नहीं आया है तब तक मैं दालों को बन्धनमुक्त करने की. और जिन लोगों के पास दास हैं उन्हें दासों की संख्या कम करने की प्रेरणा तो करंगा ही । आज मेरे निमित्त से एक दासो दासता से मुक होगई इससे मुझे पर्याप्त सन्तोप हुआ।
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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