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________________ महावीर का अन्तस्तल [१८७ ~ ~ ~ ~ ~~ ~ ~ ~ ~ या उसे दीन हीन समझेगे । याचना परिपह विजय का तरीका यही है कि मनुष्य सच्ची साधुता का परिचय दे। . . पर यह भी होसकता है कि कभी कभी याचना व्यर्थ जाय । खाने-पीने को न मिले, ठहरने को जगह भी न मिले, "जैसा कि इन म्लेच्छ देशों में अभी अभी हुआ । ऐसी अवस्था में भी घबराना न चाहिये, अलाभ पर विजय करना चाहिये, नहीं ' तो साधुता टिक न सकेगी। १२ धनी ९४४० इ. सं. कल मैंने सत्रह परिपहों का निर्णय किया था । पर गोशाल की एक बात से मुझे अठारहवीं परिपह की भी जरूरत मालूम हुई । गोशाल की यह आदत है कि जहां उसने कोई मलमूत्र देखा, कोई बीमार देखा कि नाक सिकोड़ी और भागने की चेष्टा की। पर इस तरह भागने से सफाई कैसे होगी ? अगर हम स्वच्छता पसन्द करते हैं तो हमें मल परिपह जीतना चाहिये तभी हम सफाई कर सकेंगे, बीमार की परिचर्या कर सकेंगे, असे स्वच्छ रख सकेंगे । मल के देखते ही घबराने से हम घृणा और अपमान कर सकते है पर स्वच्छता नहीं कर . सकते, न सेवा कर सकते हैं । ऐसी अवस्था में साधुता कैसे टिकेगी ? इसलिये मल परिपह का जीतना आवश्यक है। १३ धनी १५४० इ. सं. आज एक विशेष परिपह की तरफ ध्यान गया । . साध सय परिषों को सरलता से जीत सकता है पर सत्कार पुरस्कार को नहीं जीत सकता पर इसका जीतना आवश्यक है। सत्कार पुरस्कार ऊँची श्रेणी का भोग है। अधिकांश लोग इसके लिये खाना-पीना छोड़ सकते हैं रूखा सूखा खास. कते हैं अनेक तरह के कष्ट भोग सकते हैं, केवल इसलिये कि
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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