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________________ महावीर का अन्तस्तल ..... [१८५ स्त्री परिषह भी एक मानसिक परिपह है। दीक्षा के बाद ही जब मैं भिक्षा लेने जाने लगा था तब कुछ नव यौव. नाओं ने मुझे घेर लिया था। उस समय मुझे झुनपर विजय पाने के लिये अपने बाल उखाइकर फेंक देना पड़े थे । वास्तव में इस परिपह का जीतना कठिन है । यो इस परिपह को काम परिपह या मदन परिपह कहना चाहिये क्योंकि पुरुषों के समान स्त्रियों को भी इस परिपह का थोड़ा बहुत सामना करना पड़ सकता हे, फिर भी में इसे स्त्री परिपह कहता हूँ। कारण यह है कि स्त्री पुम्प के शरीर के अन्तर की दृष्टि से स्त्री पुरुष की मनोवृत्ति में अन्तर है । किसी स्त्री के सामने अगर कोई पुरुप काम-याचना करे तो साधारणतः स्त्री इसमें अपमान समझेगी, किन्तु अगर कोई स्त्री किसी पुरुप से काम-याचना करे तो पुरुष इसे स्वीकार .करे या न करे किन्तु इसमें वह अपना अपमान न समझेगा। ऐसी अवस्था में स्त्री परिपह जीतने में विशेष कठिनाई है । इसलिये मुख्यता की दृष्टि से इसे स्त्री परिपह नाम देना ही ठीक समझा है । यो इसे कोई मदनपरिपह कहे या काम परिपह कहे तो भी अनुचित न होगा । मैं अपनी दृष्टि से इसे स्त्री परिपह ही कहूंगा। साधक जीवन में एक तरह का रूखापन मालूम होता है। बहुत से लोग पूजा प्रतिष्ठा की, स्वादिष्ट भोजन की तथा और भी अनेक तरह की आशा लगाये रहते हैं । गोशाल का स्वभाव कुछ ऐसा ही है, थोड़ा सा संकट आते ही वह भाग खड़ा होता है। ऐसे लोग कोई साधना नहीं कर पाते, स्वपरकल्याण नहीं करपाते । इसके लिये साधना में अनुराग चाहिये रति चाहिये, अरतिभाव पर विजय चाहिये। इसलिये अरति परिपह विजय एक आवश्यक विजय है । इसका तात्पर्य यह है कि संयम साधना में, लोकसाधना में, आनन्दका अनुभव हो। एक
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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